श्रीमद्भागवत के आठवें स्कन्ध में गजेन्द्र मोक्ष कथा है। द्वितीय अध्याय में ग्राह और गजेन्द्र के युद्ध के बारे में बताया गया है। तीसरे अध्याय में गजेन्द्र द्वारा भगवान के स्तवन तथा गजेन्द्र मोक्ष का वर्णन है और चौथे अध्याय में गजेन्द्र और ग्राह के पिछले जन्मों के बारे में बताया गया है। तीसरे अध्याय का स्तवन सबसे ज्यादा लाभकारी है इसके बारे में स्वयं भगवान का वचन है कि ‘‘जो शेष रात्रि में यानि ब्रह्म मुहूर्त के प्रारम्भ के समय में जागकर इस स्तोत्र के द्वारा मेरा स्तवन करते हैं, उन्हें मैं मृत्यु के समय निर्मल मति (अपनी स्मृति) प्रदान करता हूं।’ और ‘अन्ते मतिः सा गतिः’ के अनुसार उस व्यक्ति को निश्चित ही भगवान की प्राप्ति हो जाती है और वह सदा के लिए जन्म-मृत्यु के बंधन से छूट जाता है। आइये अब देखते हैं कि गजेन्द्र मोक्ष की रचना क्यों हुई?
गजेन्द्र मोक्ष की रचना
इंद्रद्युम्न राजा भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे। उनके मन में ईश्वर भक्ति इतनी प्रखर हो गयी थी कि उन्होंने अपना राज्य पाठ त्याग दिया और ईश्वर की तपस्या में लीन हो गये। एक दिन इंद्रद्युम्न प्रातः स्नान आदि से निवृत होकर ईश्वर के ध्यान में बैठे थे। तभी वहां पर महर्षि अगस्त्य आये, राजा तो अपनी ईश्वर भक्ति में लीन थे अतः उन्हें महर्षि के आने का पता नहीं चला और उन्होंने महर्षि अगस्त्य को प्रणाम नहीं किया। यह देखकर महर्षि अगस्त्य क्रोधित हो गये उन्होंने इसे अपना अपमान समझा। उन्होंने राजा इंद्रद्युम्न को शाप दे डाला कि-‘‘ऋषि का अपमान करने वाले राजा तुम्हारी बुद्धि गज की तरह जड़ है, इसलिए तुम हाथी के रूप में जन्म लो।’’
इसी समय एक सरोवर पर हूहू नाम का गंधर्व जल में क्रीड़ा कर रहा था और स्नान कर रहा था। तभी ऋषि देवल स्नान करने के लिए सरोवर पर आये। गंधर्व ने उन्हें रोकने का प्रयास किया और उनके स्नान में व्यवधान उत्पन्न किया, जिससे ऋषि देवल क्रोेधित हो गये। ऋषि देवल ने हूहू गंधर्व को मगरमच्छ (ग्राह) के रूप में जन्म लेने का शाप दे दिया।
इस प्रकार महर्षि अगस्त्य के शाप से राजा इंद्रद्युम्न ने हाथी के रूप में जन्म लिया और वो हाथियों के राजा गजेन्द्र बन गये। ऋषि देवल के शाप से हूहू ने भी मगरमच्छ बनकर जन्म लिया और वह सरोवर में ग्राह बनकर रहने लगा।
एक दिन गजेन्द्र उसी सरोवर मे पानी पीने के लिए आये। पानी पीकर वह जल क्रीड़ा करने लगे तभी गंघर्व हूहू बने मगरमच्छ ने गजेन्द्र का पैर पकड़ लिया। गजेन्द्र ने अपने पैर को छुड़ाने का पूरा प्रयास किया, परन्तु गजेन्द्र को सफलता नहीं मिली। गजेन्द्र दर्द से छटपटाता रहा, गजेन्द्र के अन्य साथी भी किनारे खड़े होकर उसे देखते रहे परन्तु वे गजेन्द्र की कोई सहायता नहीं कर सके। गजेन्द्र जितना बाहर निकलने का प्रयास करता, ग्राह उन्हें और अंदर की ओर खींच लेता। ग्राह तो जल का प्राणि था और जल के प्राणी जल में शक्तिशाली होते हैं अतः वह गजेन्द्र पर भारी पड़ रहा था। अतः गजेन्द्र का शरीर साथ छोड़ने लगा।
गजेन्द्र ने अब अपनी आंखे मूंद ली और चुपचाप खड़ा रहा। तभी उसे पूर्वजन्म के संस्कार के कारण अपनी भक्ति का स्मरण होने लगा, और अब वह समझ गया कि भगवान के अतिरिक्त अब कोई उसकी रक्षा नहीं कर सकता। अतः उसने भगवान की शरण में जाने का निश्चय कर लिया। गजेन्द्र ने सोचा इस अंतिम समय में यदि प्राण की रक्षा भी नहीं हो पायी तो मुझे मुक्ति अवश्य मिल सकती है। अतः गजेन्द्र आंख मिचकर भगवान विष्णु का स्मरण करने लगा।
गजेन्द्र ने गरूड़ पर विराजमान भगवान विष्णु को देखा तो उसने कमल के फूल को अपनी सूंड में लेकर भगवान विष्णु की ओर उठाया और पीड़ा से कहा-
ऊं नमो भगवते तस्मै यत एतच्चिदात्मकम्।
पुरूषायादिबीजाय परेशायाभिधीमहि।।
अर्थात जिनके प्रवेश करने पर ये जड़ शरीर और मन आदि भी चेतन बन जाते हैं, ‘ओम’ शब्द के द्वारा लक्षित तथा सम्पूर्ण शरीरों में प्रकृति एवं पुरूष रूप से प्रविष्ट हुए उन सर्वसमर्थ परमेश्वर को हम मन ही मन प्रणाम करते हैं।
गजेन्द्र को इस तरह पीड़ा में भी स्तुति करते देख सुदर्शन चक्रधारी भगवान विष्णु, गरूड़ की पीठ से उतर आये और उन्होंने गजेन्द्र के साथ-साथ ग्राह को भी सरोवर से बाहर निकाला और अपने सुदर्शन चक्र से ग्राह का मुंह काटकर गजेन्द्र को मुक्ति प्रदान की। इंद्रद्युम्न से गज बने, गजेन्द्र की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें अपना पार्षद बना लिया। ऋषि देवल के श्राप से ग्राह बने गंभर्व हूहू की भी मुक्ति हो गयी। गंधर्व ने भगवान विष्णु की परिक्रमा कर प्रणाम किया और अपने गंधर्व लोक चला गया।
गजेन्द्र द्वारा की गयी यही स्तुति ‘‘गजेन्द्र मोक्ष पाठ’’ कही जाती है। इस प्रकार से गजेन्द्र मोक्ष नामक पाठ की रचना हुई जो आज संसारिक प्राणियों की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करती है। बोलो लक्ष्मी नारायण भगवान की जय।
दो लाइनों के साथ कथा को विराम देता हूं-
सतगुरू हमसु रिझकर एक कहा प्रसंग।
बरस्या बादल प्रेम का बीझ गया सब अंत।।
प्रस्तुति: संजय कुमार गर्ग, एस्ट्रोलाॅजर, वास्तुविद् 8791820546 (Whatsapp)
sanjay.garg2008@gmail.com
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