रामप्रसाद 'बिस्मिल' |
पाठकजनों!! वही मात्र एक 'डकैती' के जुर्म में मौत की सजा पाये ''बिस्मिल'' का चरित्र-व्यक्तित्व किस स्तर का होगा? जिसने फाँसी लगने से दो दिन पहले अपनी ''आत्मकथा'' के रूप मे देश को संबोधन! देकर अपने उच्च मानसिक स्तर, निडरता व देश प्रेम की एक मिसाल पेश की जो युगों-युगों तक याद की जाती रहेगी!
जी हां! पाठकजनों!! जेल में फाँसी लगने से पूर्व विश्व की पहली ''आत्मकथा'' (Autobiography) शहीद शिरोमणि पं0 रामप्रसाद 'बिस्मिल' ने लिखी थी! जिनको अंग्रेज सरकार ने ''काकोरी कांड'' में फाँसी की सजा सुनार्इ थी। ऐसी ही परिस्थितियों में लिखी गयी विश्व की दूसरी आत्मकथा 'चैकोस्लोवाकिया' के शहीद 'फूचिन' की थी, जो 'बिस्मिल' की आत्मकथा से 16 वर्ष बाद लिखी गयी थी। विश्व के इतिहास में ऐसी परिस्थितियों में लिखी गयी केवल दो "आत्मकथाऐं" ही दृषिटगोचर होती हैं!
इस अद्भुत-आत्मकथा (Autobiography) की विशेषताएं:-
''बिस्मिल'' ने अपने 'आत्मचरित्र' का प्रारम्भ निम्न पंक्तियों से किया है-
''क्या लज्जत है कि रग-रग से आती है सदा
दम न ले तलवार जब तक जान 'बिस्मिल' में रहे।
मरते बिस्मिल,रोशन,लहरी,अशफाक अत्याचार से
होंगे पैदा सैकड़ों इनके रूधिर की धार से।''
'बिस्मिल' का जन्म सन 1897 को हुआ था और 1927 में वह शहीद हो गये, केवल 30 वर्ष की आयु पायी, इसमें से उन्होंने 11 वर्ष क्रांतिकारी जीवन में व्यतीत किये।
'बिस्मिल' ने अपनी आत्मकथा में पूर्वजों का वर्णन प्रारम्भिक पृष्ठों में किया है, कि वे लोग ग्वालियर राज्य के चम्बल के किनारे के ग्रामों के निवासी थे, बाद में उ0प्र0 के शाहजहांपुर (आज का शाहजहांपुर जिला) आकर बस गये थे।
पाठकजनों! मैंने दर्जनों आत्मकथाऐं पढ़ी हैं, परन्तु इतनी विपरित परिस्थितियों में लिखी हुर्इ पुस्तक, एवं जितनी स्पष्टवादिता से अपनी कमियों का खुलासा 'बिस्मिल' ने किया है, ''आत्मकथा का वह स्तर कहीं ओर दृषिटगोचर नहीं होता।
काकोरी कांड के सहअभियुक्तों में से उन्होंने "असफाक'' का चरित्र सर्वश्रेष्ठ मानते हुए उन्होंने लिखा है-
असगर हरीम इश्क में हस्ती ही जुर्म है,
रखना कभी न पाव यहां सिर लिये हुए।
असगर हरीम इश्क में हस्ती ही जुर्म है,
रखना कभी न पाव यहां सिर लिये हुए।
अपनी पूज्य माता जी के विषय में लिखते हुए, 'बिस्मिल' की लेखनी ने कमाल कर दिया-
"इस संसार में मेरी कोई भोग-विलास की इच्छा नहीं। केवल एक तृष्णा है, वह यह कि एक बार श्रद्धापूर्वक तुम्हारे चरणों की सेवा करके अपने जीवन को सफल बना लेता। किन्तु यह इच्छा पूर्ण होती नहीं दिखायी देती और तुम्हें मेरी मृत्यु का दुख:पूर्ण संवाद सुनाया जायेगा। मां मुझे विश्वास है कि तुम यह समझ कर धैर्य धारण करोगी कि तुम्हारा पुत्र माताओं की माता-भारत माता-की सेवा में अपने जीवन को बलि-वेदी की भेंट कर गया और उसने तुम्हारी कुक्षी (कोख) को कलंकित न किया। जब स्वाधीन भारत का इतिहास लिखा जायेगा, तब उसके किसी पृष्ठ पर उज्जवल अक्षरों में तुम्हारा नाम भी लिखा जायेगा।''
'बिस्मिल' ने अपना चरित्र अत्यन्त असाधारण परिस्थितियों में लिखकर जेल से बाहर भेजा, ये आश्चर्य की बात थी कि उन्होंने अपना मानसिक संतुलन किस प्रकार कायम किया होगा। 'बिस्मिल' ने जेल से भागने के कई मौके जान-बूझ कर छोड़ दिये थे। 'बिस्मिल' ने लिखा है-''अंत में अधिकारियों ने यह इच्छा प्रकट की थी, कि यदि मैं बंगाल का संबंध बताकर कुछ ''बोलशेविक संबंध" के विषय में अपने बयान दे दूं, तो उनकी सजा माफ करके, उन्हें इग्लैंड भेज देगें, और उन्हें 15000रू0 पारितोषिक सरकार से दिला देंगे। परन्तु 'बिस्मिल' ने इन्कार कर दिया और मौत का वरण किया।
आत्मकथा को समाप्त करने से पहले 'बिस्मिल' के अंतिम शब्द देखिये-
''--आज दिनांक 16 दिसम्बर 1927 ई0 को निम्नलिखित पंक्तियों का उल्लेख कर रहा हूं, जबकि 19 दिसम्बर 1927 ई0 को साढ़े छ: बजे प्रात: काल इस शरीर को फाँसी पर लटका देने की तिथि निश्चित हो चुंकी है। अतएव नियत समय पर इहलीला संवरण करनी होगी ही।''
और 19 दिसम्बर 1927 ई0 को बन्देमातरम और भारत माता की जय कहते हुए वे फाँसी के तख्ते के निकट गए। चलते समय कह रहे थे-
''मालिक तेरी रजा रहे और तू ही तू रहे,
बाकि न मैं रहूं, न मेरी आरजू रहे।
जब तक कि तन में जान, रगों में लहू रहे,
तेरा ही जिक्र या तेरी ही जूस्तजू रहे।''
फिर वह फाँसी के तख्ते पर चढ़ गये और "विश्वानिदेव सवितुदुरितानी'' मन्त्र का जाप करते हुए फाँसी के फन्दे पर झूल गये।
''मालिक तेरी रजा रहे और तू ही तू रहे,
बाकि न मैं रहूं, न मेरी आरजू रहे।
जब तक कि तन में जान, रगों में लहू रहे,
तेरा ही जिक्र या तेरी ही जूस्तजू रहे।''
फिर वह फाँसी के तख्ते पर चढ़ गये और "विश्वानिदेव सवितुदुरितानी'' मन्त्र का जाप करते हुए फाँसी के फन्दे पर झूल गये।
'बिस्मिल' की 'गजल' की चार लाइनों के साथ 'ब्लॉग' समाप्त करता हूँ-
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है जोर कितना बाजुए-कातिल में है,
वक्त आने पर बता देंगे तुझे ऐ आसमां
हम अभी से क्या बतायें, क्या हमारे दिल में है।
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है जोर कितना बाजुए-कातिल में है,
वक्त आने पर बता देंगे तुझे ऐ आसमां
हम अभी से क्या बतायें, क्या हमारे दिल में है।
-लेखक-संजय कुमार गर्ग sanjay.garg2008@gmail.com (All rights reserved.)
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (20-12-2014) को "नये साल में मौसम सूफ़ी गाएगा" (चर्चा-1833)) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय शास्त्री जी, सादर नमन! ब्लॉग को परिचर्चा में शामिल करने के लिए सादर धन्यवाद! साभार!
हटाएंवे आकाश की ऊँचाइयों वाले लोग ,कहाँ हैं अब?
जवाब देंहटाएंउनकी स्मृति को प्रणाम
आदरणीया प्रतिभा जी, सादर नमन! ये महापुरूष हमारी यादों में महफूज हैं! कमेंट्स के लिए सादर धन्यवाद!
हटाएंवन्दे मातरम् का उद्घोष के साथ फाँसी के तख्ते से “मैं ब्रिटिश साम्राज्य का नाश चाहता हूँ। I wish the downfall of British Empire!" का सिंहनाद करने वाले महान क्रांतिकारी पं. रामप्रसाद बिस्मिल को सादर नमन!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति हेतु आभार!
आदरणीया कविता जी, महान हुतात्मा को हमारी भी श्रंद्धांजलि! कमेंट्स के लिए सादर धन्यवाद!
हटाएंबिस्मिल को नमन
जवाब देंहटाएंआदरणीय ओंकार जी, सादर नमन! उस महान हुतात्मा को हमारी भी श्रंद्धांजलि! कमेंट्स के लिए सादर धन्यवाद!
हटाएंसाभार धन्यवाद कि आपने अपने ब्लोग
जवाब देंहटाएंके माध्यम से शहीद को नमन कर हमें भी
अपने कर्त्यव्यों के प्रति जागरूक किया
अन्यथा---शहीदों की पुन्य-तिथियां मनाने की
अब तौर-तरीकों से हम ब-दखल हो चुके हैं.
मेरा नमन उन तक पहुंचे जो मातृभूमि के
फ़ना हुए.
आदरणीया जी, सादर नमन! आपको ब्लॉग अच्छा लगा उसके लिए सादर धन्यवाद! कमेंट्स के लिए आभार!!
हटाएंबिस्मिलजी का स्मरण कराने और सुन्दर आलेख के लिए हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएं...क्रांतिकारी बिस्मिल को शत-शत नमन....
Recent Post शब्दों की मुस्कराहट पर पुरानी डायरी के पन्ने : )
आदरणीया संजय जी! ब्लॉग को पढ़ने व् कमेंट्स करने के लिए सादर धन्यवाद!
हटाएंहँसते हँसते फांसी के फंदे पर झूल जाना आसान नहीं होता ... देश प्रेम की आग कितनी तेज़ी से जल रही थी उनके हर शेर छंद में दीखता था ... नमन है मेरा मेरा आज़ादी के परवाने बिस्मिल को ...
जवाब देंहटाएंहमारा भी नमन है! आदरणीय दिगम्बर जी! कमेंट्स के लिए धन्यवाद!
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