आया ही नहीं हमको अहिस्ता गुजर.....उर्दू गजलें

https://jyotesh.blogspot.com/2024/11/aaya-he-nahi-hamko-aahista-gujar-urdu-ghazale.html

मजबूरियों का पास भी कुछ था वफा.........

मजबूरियों का पास1 भी कुछ था वफा के साथ
वो  रास्ते  से  फिर  गया  कुछ  दूर आ के साथ
कुर्बे-बदन2  के  कम  न  हुए  दिल  के  फासले
इस उम्र  कट  गयी  किसी  नाआश्ना के  साथ
साथ  उसके  रह  सके  न  बगैर  उसके रह सके
ये    रब्त है   चराग  का  कैसा  हवा  के  साथ
माना     कि    इंतजार   किसी   का   नहीं   रहा
अब भी तो दिल धड़कता है आवाजे-पा5 के साथ
मैं  झेलता  रहा हूं   अजाब6  उसका     उम्र   भर
बचपन  में  एक  अहद7 किया   था खुदा के साथ
वो    रात    कैसी    रात   थी   पर  यूं  लगा  मुझे
जैसे   कि   सुबह   हो  गयी  हर्फे-दुआ  के   साथ।
-सलीम अहमद 
1लिहाज 2शरीर का सामिप्य
3अपरिचित 4तनाव 5पैरों का आवाज  6कष्ट
7वचन
https://jyotesh.blogspot.com/2024/11/aaya-he-nahi-hamko-aahista-gujar-urdu-ghazale.html


सोचों की तलब क्या है मुझे कुछ नहीं.........


सोचों की तलब1 क्या है  मुझे  कुछ  नहीं  मालूम
ख्वाहिश सरे-लब2 क्या  है  मुझे कुछ नहीं मालूम
रोता    हूं    कि    जी    चाहता   है   अश्क   बहाऊं
रोने  का  सबब3 क्या  है  मुझे  कुछ  नहीं  मालूम
ये  दर्द  की  खुश्बू,   ये   खमोशी   के   धनुष   रंग
दुनिया  में  ये  सब  क्या  है  मुझे कुछ नहीं मालूम
शामों  की  उदासी   का   मुअम्मा4   मेरे   नजदीक
तब क्या था और अब क्या है मुझे कुछ नहीं मालूम
हर   लम्हा   गुजर   जाता   है   आंगन  में  सुलगते
तन्हाई-ए-शब5 क्या   है   मुझे   कुछ   नहीं मालूम
सांसों  का  कलम  चलता  है  सोचों   के  बरक6 पर
ये  शेरो-अदब7 क्या  है   झे   कुछ   नहीं   मालूम।
-अजरक अदीम
1इच्छा 2होठों पर 3आंसू 4कारण 5पहेली 6रात का एकांत
7पन्ना 8काव्य और साहित्य

https://jyotesh.blogspot.com/2024/11/aaya-he-nahi-hamko-aahista-gujar-urdu-ghazale.html

महफिलों में देखता हूं हर तरफ चेहरे नये.....


महफिलों   में   देखता   हूं   हर  तरफ चेहरे नये
या  सजाये  है  मिरी  बहशत1  ने   आईने   नये
एक  ही  ताबीर2 निकली  जब  मेरे हर ख्वाब की
ख्वाब  उम्मीदों ने कल शब3 जाने क्यों देखे नये
फिर से दीवानों ने बदले इश्को-मस्ती4 के उसूल5
मुफ्ती-ए-शहरे-जुंनूॅं6  ने  फिर   दिये  फतवे  नये
मेरे  दिल में जब  समाया है अजल7 से तेरा हुस्न
मेरी   आंखें   ढूंढ़ती   फिरती  हैं  क्यों  जलवें  नये
बैठने  देता  नहीं   दिल  को   कहीं   अज्मे-सफर8
मंजिलों   की   कोख   से   पैदा    हुए    रस्ते   नये
बेतरह9  आयी  है गुलशन में खिजां ‘एमन’ मगर
खार  के  पहलू  में  खिल  उट्ठे हैं कुछ गुन्चें नये।
-मामून एमन
1पागलपन 2स्वप्नफल 3रात 4प्रेम और उन्माद 5नियम
6उन्माद शहर का मुफ्ती 7अनादिकाल 8यात्रा का संकल्प 9बहुत अधिक

https://jyotesh.blogspot.com/2024/11/aaya-he-nahi-hamko-aahista-gujar-urdu-ghazale.html


आया ही नहीं हमको अहिस्ता गुजर........

आया   ही    नहीं    हमको  अहिस्ता गुजर जाना
शीशे का   मुकद्दर  है   टकरा   के   बिखर   जाना
तारों  की  तरह  शब   के  सीने   में  उतर   जाना
आहट न हो  कदमों  की  इस  तरह  गुजर  जाना
नशे  में   संभलने   का   फन  यूं  ही  नहीं   आता
इन  जुल्फों  से  सीखा  है  लहरा  के  संवर  जाना
भर   जायेंगे   आंखों   में   आंचल   से  बंधे  बादल
याद आयेगा जब गुल पर शबनम का बिखर जाना
पत्थर    को    मिरा   साया   आईना सा चमका दे
जाना  तो  मिरा   शीशा   यूं   दर्द   से   भर   जाना
ये   चांद   सितारे   तुम   औरों   के   लिए  रख लो
हम को  यहीं  जीना  है  हम  को  यहीं  मर  जाना
-बशीर बद्र

संकलन-संजय कुमार गर्ग sanjay.garg2008@gmail.com

मुक्तक/शेरों-शायरी के और संग्रह 

कोई टिप्पणी नहीं :

एक टिप्पणी भेजें

आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुमूल्य है!