मंगल ग्रह का भौतिक वर्णन-
सौर-मंडल में पृथ्वी के बाद मंगल ग्रह का चौथे स्थान है। इसके तल की आभा लाल है, इस कारण इसे लाल ग्रह के नाम से भी जाना जाता है। इसका व्यास 6860 कि0मी0 है जो कि पृथ्वी के व्यास का लगभग आधा है। मंगल ग्रह की पृथ्वी से दूरी 3 करोड़ 50 लाख मील है तथा मंगल सूर्य से 22 करोड़ 40 लाख कि0मी0 दूर है। यह अपने परिभ्रमण मार्ग पर 689 दिन में सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करता है। मंगल की भ्रमण गति 45 दिन में 20 अंश या डेढ़ दिन में एक अंश होती है। इसका गुरूत्वाकर्षण पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण का लगभग दसवें भाग के बराबर है। जिस प्रकार हमारी पृथ्वी के चारों ओर चन्द्रमा घूमता है उसी प्रकार मंगल के चारों ओर दो चन्द्रमा घूमते हैं। मंगल जब पृथ्वी के निकटतम होता है तब वह पृथ्वी से लगभग 9.8 करोड़ कि0मी0 दूर होता है तथा इसके अध्ययन के लिए एक सही समय होता है। उस समय मंगल लाल मणि के समान दिखाई देता है।मंगल ग्रह का पौराणिक विवरण-
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार मंगल देव की चार भुजाएं हैं। इनके शरीर पर लाल रोंये हैं। इनके हाथों में अभयमुद्रा, त्रिशूल, गदा और वर की मुद्रा है। इनके शरीर पर लाल वस्त्र हैं तथा इन्होंने लाल रंग की मालाएं धारण की हुई हैं। मंगल के सिर पर सोने का मुकुट है, तथा इनकी सवारी भेड़ है।मंगल ग्रह की पौराणिक कथा-
ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार जब वाराह कल्प में हिरण्याक्ष राक्षस पृथ्वी को चुराकर ले गया। तब पृथ्वी माता का उद्धार करने के लिए भगवान ने वाराह अवतार लिया और पृथ्वी को हिरण्याक्ष के चंगुल से छुड़ाया और हिरण्याक्ष का वध किया। भगवान को देखकर पृथ्वी देवी के मन में उनको पति रूप में वरण करने की इच्छा हुई। पृथ्वी माता की इच्छा पूरी करने के लिए भगवान अपने मनोरम रूप में प्रगट हुये, तथा पृथ्वी देवी के साथ एक वर्ष तक एकांत वास किया। पृथ्वी माता और भगवान के संयोग से मंगल ग्रह की उत्पत्ति हुई। इसलिए पौराणिक मंत्र में मंगल ग्रह को धरतीगर्भसंभूतम कहकर संबोधित किया गया है।मंगल का वास्तु के अनुसार विवरण-
मंगल देव वास्तु में दक्षिण दिशा का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह दिशा पृथ्वी तत्व का प्रतीक मानी जाती है, दक्षिण दिशा के स्वामी यम हैं। यह दिशा कालपुरूष-वास्तुपुरूष के बायें सीेने, किडनी, बायें फेफड़े को प्रभावित करती है। यदि जन्मकुण्डली के हिसाब से देखें तो दक्षिण दिशा कुण्डली में दसवें घर का प्रतिनिधित्व करती है। इसी भाव से कालपुरूष के उपरोक्त अंगों का विचार भी किया जा सकता है। यह दिशा धन-धान्य, पशु-संपदा व सुख-शान्ति से संबंधित है। दक्षिण दिशा को कभी खाली नहीं छोड़ना चाहिए। यदि आपका भूखण्ड दक्षिणमुखी हो तो। इस दिशा में भार बढ़ाकर तथा उत्तर-पूर्व में भार कम करके, व उत्तर-पूर्व में दरवाजे-खिड़कियां बनवाकर काफी हद तक इस दिशा को लाभदायक बनाया जा सकता है।मंगल ग्रह का ज्योतिषीय विवरण-
नवग्रहों में मंगल को सेनापति की उपाधि दी गयी है। पारिवारिक रिश्तों में ये छोटे-भाई-बहनों का प्रतीक माने जाते हैं। मंगल का फारसी में मिरीख और अंग्रेजी में मार्स कहते हैं, हिन्दी में इन्हें भूमिसुत, कुज, अंगारक, रूधिर, आग्नेय, त्रिनेत्र, भौम आदि नामों से भी जाना जाता है। यह पुरूष रूप और उग्र माने जाते हैं। ये जन्मकुण्डली में जिस भाव पर बैठते हैं वहां से 4, 7 और आठवें भाव पर पूर्ण दृष्टि डालते हैं। मंगल मेष व वृश्चिक राशि के स्वामी हैं। ये सूर्य, गुरू व चंद्रमा को अपना मित्र तथा बुध को शत्रु मानते हैं। शुक्र, शनि व राहु से समभाव रखते हैं। ये मकर राशि में उच्च के व कर्क राशि में नीच के कहलाते हैं। ये क्षत्रिय जाति के हैं तथा मध्यान्ह में बलि होते हैं। तत्वों में ये अग्नि तत्व के प्रतीक माने जाते हैं। ये वृष और तुला लग्न वालों के लिए मारक ग्रह तथा कर्क व सिंह लग्न वालों के लिए मंगल योगकारक होते हैं, मीन लग्न में मंगल स्वयं मारकेश का कार्य न करके साहचर्य से फल देते हैं। इनकी महादशा 7 वर्ष की होती है। मंगल को भूमि पुत्र कहा जाता है । इनसे कुण्डली में वीरता, भाइयों, रोग, शत्रु, जमीन-जायदाद व भूमि संबंधी क्रिया-कलापों का अध्ययन किया जाता है। मंगल पुरूषों में शुक्राणुओं के कारक हैं इनकी कृपा के बिना पुत्र-संतान की प्राप्ति संभव नहीं है। इनकी कृपा प्राप्त होने पर ही जातक को पैतृक संपत्ति व भूमि से लाभ की प्राप्ति होती है। कुण्डली में गुरू के साथ होने पर सात्विक बन जाते हैं, व सूर्य के साथ होने पर राजभाव को बढ़ाते हैं वहीं यदि शनि के साथ हो तो जातक को मुकदमेंबाजी व बदनामी दिलाते हैं। यदि कुण्डली में ये 3,4,7,10,11 में स्थानबली होते हैं वहीं यदि कुण्डली में 1,4,7,12 वे भावों में हों तो जातक को मांगलिक बनाते हैं। शरीर में ये मांसपेशियों में निवास करतेे हैं। अंगों में इनका निवास स्थान नेत्रों में हैं। वनों का क्षेत्र इनके रहने का प्रिय स्थान है। तीखा मसालेदार इनका प्रिय भोजन है, और ग्रीष्म ऋतु इनकी प्रिय ऋतु है। मंगल की प्रिय धातु सोना है और ये मूंगा में निवास करते हैं।मंगल ग्रह का हस्तरेखीय वर्णन-
हथेली में जीवन रेखा के प्रारम्भिक स्थान के नीचे और उससे घिरा हुआ, शुक्र पर्वत के ऊपर जो फैला हुआ भाग है वहीं मंगल पर्वत है। (चित्र में देखिए) जिनके हाथ में मंगल पर्वत ह्ष्टपुष्ट व पूरी लंबाई लिए हुए होता है ऐसे जातक में धीरता व साहस इनका प्रधान गुण होता है। जीवन में अन्याय ये बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करते, ऐसे व्यक्ति पुलिस विभाग या मिलिट्री में अत्यंत ऊंचे पद पर पहुंचते हैं। शासन करने का इनमें जन्मजात गुण होता है।जरूरत से ज्यादा विकसित मंगल पर्वत व्यक्ति को दुराचारी, अत्याचारी तथा अपराधी बनाता है। साथ ही समाज विरोधी काम करने वाले भी हो जाते हैं, इनका स्वभाव लडाकू होता है, हर किसी से लड़ने, व अपनी मनमानी करने के ये आदी होते हैं।
मंगल ग्रह के जपनीय मंत्र-
वैदिक मंत्र-
ॐ अग्र्निमूर्धा दिवः ककुत्पतिः पृथ्व्यिा अयम् अपाॅं रेता सि जिन्वति।।पौराणिक मंत्र-
धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्।
कुमारं शक्तिहस्तं तं मंगलं प्रणमाम्यहम्।।
बीज मंत्र-
ॐ क्रां क्रीे क्रौं सः भौमाय नमः
सामान्य मंत्र-
ॐ अं अंगारकाय नमः
इनमें से किसी एक मंत्र का श्रद्धापूर्वक एक निश्चित संख्या में नित्य जाप करना चाहिए। जप की कुल संख्या 10000 तथा समय प्रातः 8 बजे है।
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प्रस्तुति: संजय कुमार गर्ग, वास्तुविद्, एस्ट्रोलाॅजर 8791820546 Whats-app
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