धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से उत्पन्ना एकादशी की कथा सुनने के बाद कहा! हे जगदीश! आपने मुझे उत्पन्ना एकादशी का कथा सुनायी, अब आप मुझे मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी के बारे में भी बताईये, इस एकादशी का क्या नाम है? और इस एकादशी का व्रत करने से क्या फल मिलता है? इस एकादशी की कथा भी मुझे सुनाइये।
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा-हे धर्मराज कुन्ती पुत्र! मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी मोक्षदा एकादशी है। इस एकादशी का व्रत को करने से मनुष्य के सब पाप नष्ट हो जाते हैं और यह एकादशी मृत्यु के पश्चात मोक्ष को देने वाली है। अब मैं तुम्हे इस एकादशी की कथा सुनाता हूं-
Mokshada Ekadashi Katha: मोक्षदा एकादशी की कथा (2024)
प्राचीनकाल में गोकुल नाम का एक सुन्दर नगर था। उस नगर में वैखानस नाम के एक प्रतापी राजा राज्य करते थे। राजा वैखानस अपनी प्रजा का बड़ा ध्यान रखते थे, उनको हर प्रकार की सुविधा प्रदान करते थे। उन के राज्य में विद्वान ब्राह्मण रहते थे, जो कि चारों वेदों के ज्ञाता थे।एक बार राजा वैखानस रात्रि में विश्राम कर रहेे थे, जो उन्होंने एक डरावना स्वप्न देखा, उन्होंने देखा कि उनके पिता नरक में निवास कर रहे हैं और नरक की पीड़ा से अत्यंत व्याकुल हैं। यह स्वप्न देख कर राजा वैखानस को अत्यंत आश्चर्य हुआ। अगले दिन वह अपने राज्य के विद्वान ब्राह्मणों के पास गये, और उन्होंने अपने पिता को नरक में देखने वाला स्वप्न सुनाया। जहां पर उनके पिता राजा वैखानस से अपने आप को नरक की पीड़ा से मुक्त कराने के लिए कह रहे थे। राजा ने विद्वान ब्राह्मणों कहा कि इस स्वप्न को देखने के बाद मुझे अत्यंत कष्ट व पीड़ा हो रही है, मैं अपने राज्य में स्त्री, पुत्र, धन-धान्य आदि सारे सुख भोग रहा हूं और उधर मेरे पिता नरक में कष्ट झेल रहे हैं। हे विद्वान ब्राह्मणों मैं क्या करूं? मुझे कोई ऐसा उपाय, तप, व्रत, दान आदि बताइये जिससे मैं अपने पिता को नरक की पीड़ा से मुक्ति दिला सकूं। अन्यथा मेरा जीवन व्यर्थ हो जायेगा यदि मैं अपने पिता को इस घोर संकट से उबार नहीं पाया?
विद्वान ब्राह्मणों ने कहा-आपकी इस समस्या का हल केवल तीनों कालों को जानने वाले पर्वत ऋषि ही दे सकते हैं। आप उनकी शरण में जाइये।
यह सुनकर राजा पर्वत ऋषि के आश्रम पहुंचे, वहां पर अनेक ऋषि मुनि तपस्या में लीन थे, वे वहां पर्वत ऋषि के पास गये और उन्हें साष्टांग दंडवत किया। कुक्षलक्षेम के पश्चात राजा ने पर्वत ऋषि से अपनी पीड़ा का कारण बताया!
ऋषि पर्वत ध्यान में चले गये और राजा के पिता के भूतकाल में विचरण करने लगे और उन्होंने अपनी तपस्या के बल पर राजा के पिता के नरक में जाने का कारण जान लिया और राजा से बोले-
तुम्हारे पिता ने पिछले जन्म में अपनी एक पत्नि के कहने में आ कर दूसरी पत्नि के ऋतुदान मांगने पर भी उसे ऋतुदान नहीं दिया, अपनी पत्नियों को बराबर का अधिकार ना देने के पाप के कारण उन्हें नरक की यातानऐं झेलनी पड़ रही हैं।
तब राजा ने पर्वत ऋषि से आपने पिता की मुक्ति का उपाय बताने की प्रार्थना की!
मुनि ने कहा-राजन! तुम मार्गशीष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करो, और इस उपवास का पुण्य अपने पिता को देने का संकल्प कर लो। ऐसा करने से तुम्हारे पिता को अवश्य मुक्ति मिलेगी, और वह नरक की पीड़ा से मुक्त हो जायेंगे।
राजा ने ऋषि के बताये अनुसार अपने परिवार के साथ मोक्षदा एकादशी का व्रत किया और व्रत का पुण्य अपने पिता को अर्पित कर दिया। व्रत के पुण्य प्रभाव से उनके पिता को नरक से मुक्ति मिल गयी।
उनके पिता ने नरक से मुक्त होते समय अपने पुत्र राजा वैखानस को आशीर्वाद दिया और स्वर्गलोक को चले गये।
भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि जो भी भक्त इस व्रत को करते हैं उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और उन्हे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
बोलो सत्य नारायण भगवान की जय! हरि नमः हरि नमः हरि नमः
बोलो सत्य नारायण भगवान की जय! हरि नमः हरि नमः हरि नमः
सात समंद की मसि करौं, लेखनि सब बनराइ।
धरती सब कागद करौं, तऊ हरि गुण लिख्या न जाइ॥
अर्थात यदि मैं सातों समुद्रों के जल की स्याही बना लूँ व समस्त वन समूहों की लेखनी बना लूँ, और सारी पृथ्वी को कागज बना लूँ, तब भी परमात्मा के गुण-लीला को नहीं लिखा जा सकता। यह परमात्मा अनन्त गुणों वाला है।
तो
साथियों आपको ये कथा कैसी लगी, कमैंटस करके बताना न भूले, यदि कोई
जिज्ञासा हो तो कमैंटस कर सकते हैं, और यदि आप नित्य नये आलेख प्राप्त करना
चाहते हैं तो मुझे मेल करें। अगले आलेख तक के लिए मुझे आज्ञा दीजिए
नमस्कार जयहिन्द।
प्रस्तुति: संजय कुमार गर्ग, एस्ट्रोलाॅजर, वास्तुविद् 8791820546 (Whatsapp)
sanjay.garg2008@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं :
एक टिप्पणी भेजें
आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुमूल्य है!