बुध ग्रह का भौतिक वर्णन-
बुध सौर मण्डल का सबसे छोटा ग्रह है। बुध ग्रह सूर्य का सबसे निकटतम ग्रह है, इसी कारण इस पर अत्यधिक उष्णता है। बुध सूर्य से 5 करोड़ 80 लाख कि0मी0 दूरी पर है। बुध अपने परिभ्रमण मार्ग पर 88 दिन में सूर्य की एक परिक्रमा पूरी कर लेता है। यह सदैव अपना एक भाग सूर्य की ओर करके परिक्रमा करता है। इसका व्यास केवल 5160 कि0मी0 है। इसका गुरूत्व भी हमारी पृथ्वी से एक चौथाई है। पृथ्वी पर यदि कोई व्यक्ति 6 फुट कूद सकता है वहीं व्यक्ति बुध ग्रह पर 24 फुट ऊंचा कूद सकेगा। बुध की पृथ्वी से दूरी 10 करोड़ 15 लाख कि0मी0 है।बुध ग्रह सूर्य के निकट होने के कारण इसे देखा जाना कठिन है। यह सूर्योदय कुछ देर पहले पूर्वी क्षितिज पर तथा सूर्य के अस्त होने के कुछ ही मिनट बाद पश्चिम क्षितिज पर, प्रथम तारे के समान चमकता हुआ दिखाई देता है।
बुध ग्रह का पौराणिक विवरण-
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार बुध पीले रंग की पुष्पों की माला व पीला वस्त्र शरीर पर धारण किये रहते हैं। बुध देव की चार भुजाएं हैं। ये अपने चारों हाथों में तलवार, ढाल, गदा और एक हाथ में वरदान देने की मुद्रा धारण किये हुए हैं। बुध देव अपने सिर पर सोने का मुकुट तथा गले में सुन्दर माला धारण किये रहते हैं। इनका वाहन शेर है।बुध ग्रह की पौराणिक कथा-
अथर्ववेद के अनुसार बुध के पिता का नाम चन्द्रमा है और माता का नाम तारा है। ब्रह्माजी ने इनका नामकरण बुध किया था, क्योंकि इनकी बुद्धि अधिक तीव्र थी। बुध सभी शास्त्रों में पारंगत हैं तथा अपने पिता चन्द्रमा की ही भांति तेजस्वी हैं। मत्स्य पुराण के अनुसार ब्रह्मा जी ने इनकी योग्यता को देखते हुए इन्हें भूतल का स्वामी तथा ग्रह बना दिया। मत्स्यपुराण के अनुसार बुध ग्रह का वर्ण कनेर पुष्प के समान पीले रंग का है। बुध का रथ श्वेत है और प्रकाशित हो रहा है, इनके रथ में वायु के समान चलने वाले अश्व जुड़े रहते हैं।महाभारत में आयी एक कथा के अनुसार इनकी बुद्धि से प्रभावित होकर महाराज मनु ने अपनी गुणवती कन्या इला का इनके साथ विवाह कर दिया। इला और बुध से महाराज पुरूरवा हुए।
बुध ग्रह का वास्तु के अनुसार विवरण-
बुध देव वास्तु में उत्तर दिशा का प्रतिनिधित्व करते हैं, इस दिशा से कालपुरूष के हृदय व सीने का विचार किया जाता है। जन्मकुण्डली की दृष्टि से देखें तो कुण्डली में चतुर्थ भाव उत्तर दिशा का प्रतिनिधित्व करता है। इस दिशा के स्वामी कुबेर हैं। यह दिशा मातृ-स्थान है। इस दिशा में जल तत्व विद्यमान रहता है। यदि भूखण्ड में यह स्थान खाली नहीं होता तो वह घर स्त्रियों से वंचित रह जाता है। यही दिशा धन-वैभव के आगमन की दिशा भी है, भूखण्ड में उत्तर दिशा में दरवाजे एवं खिड़कियां होने से कुबेर की सीधी दृष्टि पड़ती है जिससे धन, वैभव व आर्थिक उन्नति होती है। यदि किसी घर की उत्तर दिशा दोषयुक्त है तो उस घर के स्वामी की कुण्डली में चतुर्थ भाव निश्चित ही खराब होगा, ऐसे जातक को मां का सुख, नौकर-चाकर व वाहन आदि का सुख प्राप्त नहीं होगा, साथ ही उनकी आर्थिक स्थिति भी खराब होगी।
बुध ग्रह का ज्योतिषीय विवरण-
नवग्रहों के मंत्रीमण्डल में इन्हें राजकुमार की उपाधि प्राप्त है। बुध का फारसी नाम उतारूद है और इन्हें अंगे्रजी में मर्करी कहा जाता है। हिन्दी में बुध को क्षैतिज, सौम्य, बोधन, शान्त कुमार आदि नामों से भी जाना जाता है। यह नंपुसक ग्रह माने जाते हैं जिस ग्रह के साथ बैठते हैं उसी के अनुसार व्यवहार करने लगते हैं। कुण्डली में अधिकतर ये सूर्य ग्रह के साथ या उनके पीछे रहते हैं। सभी ग्रहों में ये एक ऐसे ग्रह हैं जो सूर्य के साथ रहकर भी मंद नहीं होते अन्यथा अन्य ग्रह सूर्य के साथ रहकर अक्रान्त हो जाते हैं। जिस भाव पर बैठते हैं वहां से सातवें भाव पर पूर्ण दृष्टि रखते हैं। बुध ग्रह सूर्य, राहु, शुक्र को अपना मित्र तथा चन्द्रमा को अपना शत्रु मानते हैं, जबकि चन्द्रमा इन्हें अपना मित्र मानता है। ये मंगल, शनि, गुरू से समभाव रखते हैं। बुध, कन्या राशि में उच्च के व मीन राशि में नीच के होते हैं। जबकि मिथुन व कन्या इनकी स्वराशियां हैं। बुध को शुद्र जाति का माना जाता है, वैसे इन्हें सौम्य ग्रह माना जाता है। मिथुन, कन्या, व तुला लग्न के लिए ये योगकारक एवं धनु, मीन लग्न के लिए ये एक मारक ग्रह हैं। सांसारिक रिश्तों में यह मामा, गोद ली हुई संतान का प्रतीक हैं। शरीर में ये त्वचा व अंगों में नाक पर विशेष प्रभाव डालते हैं। गुणों में ये रजोगुणी हैं, तत्वों में पृथ्वी तत्व हैं, खट्ठे-मीठे पदार्थों इनको विशेष प्रिय होते हैं। ऋतुओं में इन्हें शरद ऋतु प्रिय है और रंगों में ये हरे रंग में निवास करते हैं। कुण्डली में इनसे जातक में बुद्धि, काव्य-शक्ति, वाणी, वेद-वेदांग, ज्योतिष-शास्त्र का अध्ययन, व्यापार, वैद्यक, कुष्ठ व गुप्त रोग, संग्रहणी आदि रोगों का विचार इनसे किया जाता है। ये विशेष रूप से व्यापारिक कार्यो के कारक ग्रह हैं। इनकी दशा 17 वर्ष की होती है। इनकी प्रिय धातु कांस्य है तथा ये पन्ना में निवास करते हैं, प्रभात इनका प्रिय समय है तथा ये गांव में रहते हैं। मानव की बुद्धि में ये निवास करते हैं।हस्तरेखा में बुध का स्थान-
हथेली में कनिष्ठिका यानि लिटिल फिंगर के नीचे वाला क्षेत्र बुध पर्वत कहलाता है। यह पर्वत बुद्धि के साथ-साथ भौतिक समृद्धि का प्रतीक भी माना जाता है। जिन व्यक्तियों के हाथ में ये पर्वत उभार लिये होता है ऐसे जातक उर्वर मस्तिष्क वाले, तेज दिमाग वाले होते हैं, ये जिस कार्य में हाथ डालते हैं वहीं कार्य इनके पूरे होते चले जाते हैं।यदि यह पर्वत किसी के हाथ में जरूरत से ज्यादा उभार लिये होता है ऐसे व्यक्ति चालाक व धूर्त होते हैं, तथा दूसरों को धोखा देने में पटु होते हैं। यदि किसी के हाथ में ये पर्वत दबा हुआ सा हो, ऐसे व्यक्ति अपना जीवन अभावों में बिताते हैं। यदि किसी हाथ में बुध पर्वत उभार लिये हुये हों तथा लिटिल फिंगर का सिरा नुकीला हो तो वे वाकपटु होते हैं, यदि उंगली का सिरा वर्गाकार हो तो ऐसे व्यक्ति तर्क-बुद्धि के धनी होते हैं।
बुध ग्रह के जपनीय मंत्र-
वैदिक मंत्र-
ॐ उद्बुध्यस्वाग्रे प्रति जाग्रहि त्वमिष्टापूर्ते सं सृजेथामयं च।अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन् विश्वेदेवा यजमानश्च सीदत।।
पौराणिक मंत्र-
प्रियगुंकलिकाश्यामं रूपेणाप्रतिमं बुधम्।
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम्।।
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम्।।
बीज मंत्र-
ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः
सामान्य मंत्र-
ॐ बुं बुधाय नमः
इनमें से किसी एक मंत्र का श्रद्धापूर्वक एक निश्चित संख्या में नित्य जाप करना चाहिए। जप की कुल संख्या 9000 तथा समय 5 घड़ी दिन है।
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प्रस्तुति: संजय कुमार गर्ग, वास्तुविद्, एस्ट्रोलाॅजर 8791820546 Whats-app
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