साइनस Sinus नाक में होने वाला एक प्रकार संक्रमण हैं, जिसमें नाक में मांस उभर जाता है या नाक की हड्डी बढ़ जाती है, जिससे नाक के वायु छिद्र अवरूद्ध हो जाते हैं, इसके कारण नाक से सांस लेने में समस्या आने लगती हैं, जुकाम की समस्या बनी रहती है। इसके कारण नाक के आसपास और आखों के चारों ओर सूजन सी आने लगती है। यह संक्रमण नाक की हड्डी में स्थित साइनस नाम के छिद्र में होता है इसलिए इसे साइनस कहा जाता है। अगर ये समस्या बढ़ जाए तो यह साइनसाइटिस में बदल सकती है। यह समस्या आजकल काफी हो गयी है, एलौपेथी की दवाएं इस समस्या का स्थायी इलाज नहीं करती, योग में प्राणायाम या नेति द्वारा इसका स्थायी इलाज किया जा सकता है। आइये देखते हैं प्राणायाम से किस प्रकार इस समस्या को दूर किया जा सकता है।
Sinus Problem: "साइनस" की समस्या "प्राणायाम" से दूर कीजिए!
साइनस जैसी बीमारी को दूर करने के लिए योगासन से बेहतर है कि आप प्राणायाम करें, प्राणायाम के द्वारा साइनस का इलाज संभव है।प्राणायाम के नाम-
1-नाड़ी शोधन प्राणायाम
2-भ्रामरी प्राणायाम3-कपालभाति प्राणायाम
4-भस्त्रिका प्राणायाम
प्राणायाम का अभ्यास कैसे करें-
यदि आप पहली बार प्राणायाम कर रहे हैं तो सबसे पहले नाड़ी शोधन प्राणायाम का अभ्यास प्रारम्भ करें। पन्द्रह दिनों तक इस प्राणायाम के अभ्यास के बाद भ्रामरी प्राणायाम करें, और इसके बाद कपाल भाति प्राणायाम प्रारम्भ करें। एक-दो माह तक उपरोक्त तीनों प्राणायाम करने के बाद भस्त्रिका प्राणायाम प्रारम्भ करें, जो साइनस की बीमारी के साथ अनेक बीमारियों में रामबाण का काम करता है। अन्य बीमारियों के बारे में हम अन्य किसी लेख मे चर्चा करेंगे, आज केवल साइनस की बीमारी के बारे में ही बात करेंगे।कपालभाति प्राणायाम-
किसी दरी या कम्बल पर बैठ जाये, कमर को बिल्कुल सीधा रखें, सुखासन या किसी और आसन में बैठें, दोनों हाथों से अपने घुटनों को मजबूती से पकड़ लें। कुछ देर मन को शांत करें, चार-पांच बार गहरी-गहरी सांस लें।अब दोेनों नासिका से धीरे-धीरे सांस अन्दर लें, और फिर तेजी से सांस को नासिका से ही बाहर की ओर छोड़े, जैसे लुहार की धौंकनी की आवाज होती है उसी प्रकार की आवाज होगी, दोनों नासिका छिद्रों से सांस को धीरे-धीरे लेना है परन्तु दोनों नासिका छिद्रों से छोड़ना है जोर से। प्रारम्भ में ज्यादा जोर से भी ना छोड़े, धीरे से ही छोड़े, अभ्यास सब दृढ़ हो जाये तक तेजी से छोड़ सकते हैं। एक बार सांस लेने व छोड़ने से एक चक्र पूरा हो जाता है। इस प्रकार एक बार में 20 से 25 चक्र संपन्न करें। अंत में विश्रााम करें। धीरे-धीरे अभ्यास को बढ़ाते चले जाये।
भस्त्रिका प्राणायाम-
उपरोक्त प्रकार से ही बैठना है, सारे कार्य उपरोक्त प्रकार से ही करने हैं केवल इस प्राणायाम में सांस को लेना भी तेजी से है और छोड़ना भी तेजी से है। बाकी सभी उपरोक्त प्रकार से ही संपन्न होगा। पांच चक्र पूरा होने के बाद धीरे-धीरे गहरी सांस लें उसके बाद ही अगला चक्र प्रारम्भ करें।क्या सावधानियां रखें-
1-उच्च रक्तचाप के रोगी, ह्दय रोगी, दुर्बल शरीर वाले, और दुर्बल फेफड़े वाले व्यक्तियों को ये प्राणायाम नहीं करने चाहिए।2-उपरोक्त समस्याओं से जूझ रहे व्यक्ति इन दोनों प्राणायामों के स्थान पर नाड़ी शोधन, व भ्रामरी प्राणायाम करें, या फिर किसी योग्य योगाचार्य की देखरेख में जलनेति करें, उनको काफी आराम मिलेगा।
3-उपरोक्त प्राणायाम करते समय यदि नाक से खून आ जाये, या कान में दर्द होना प्रारम्भ हो जाये जो प्राणायाम को रोक देना चाहिए, चार-पांच दिन बाद पुनः प्राणायाम कर सकते हैं। नासिका में खून आने पर गाय का घी हल्का गर्म करके डालें, लाभ होता है, व ब्लड आना भी रूक जाता है।
अन्य महत्वपूर्ण सुझाव-
1-प्राणायाम करने का स्थान साफ-सुथरा और शांत होना चाहिए।2-प्राणायाम प्रातः फ्रेस होने के बाद ही करना चाहिए।
3-प्राणायाम करने से पहले कुछ देर योगासन या हल्की एक्सरसाइज करें ताकि आपका शरीर वार्मअप हो जाये। एकदम से पहले प्राणायाम न करें।
4-प्राणायाम करने के बाद श्वासन जरूर करना चाहिए।
5-पहली बार प्राणायाम करने वालों को किसी योग शिक्षक के दिशा निर्देशन में ही प्राणायाम करना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति आनलाइन योग या प्राणायाम सीखने के इच्छुक हैं वो मेरे व्हाट्सएप पर मैसेज करें। मैं आनलाइन प्राणायाम, योग, मैडिटेशन सिखाता हूं।
धन्यवाद, जय हिन्द! आपके बहुमूल्य कमैंटस की प्रतीक्षा में!!!
प्रस्तुति: संजय कुमार गर्ग, योगाचार्य, वास्तुविद्, एस्ट्रोलोजर
sanjay.garg2008@gmail.com Whats-app 8791820546
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