धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से कहा कि हे! भगवन् आपने मुझे पौष मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी सुफला एकादशी की सुन्दर व मनोहर कथा सुनाई। अब आप कृपा करके पौष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी के बारे में भी बताइये, इस एकादशी का क्या नाम है, और इसकी कथा भी हमें सुनाइये। इस व्रत को करने से क्या फल प्राप्त होता है, इसके बारे में भी हमें बताइये।
भगवान श्री कृष्ण बोले! पौष मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी कहते हैं । इस एकादशी में भी अन्य एकादशियों के समान भगवान श्री हरि नारायण की पूजा व व्रत किया जाता है। अब मैं तुम्हे पौष पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा कहता हूं, ध्यान से सुनिए,
पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा (2025)
भद्रावली नाम का एक राज्य था। वहां पर सुकेतु नाम के एक राजा राज्य करते थे। उनकी पत्नि का नाम शैव्या था। उनके कोई संतान नहीं थी। इस कारण दोनों बहुत चिंतित रहते थे। यहां तक की उनके पितर भी रो रो कर पिंड लिया करते थे, उनके मन में एक ही चिंता रहती थी कि राजा के बाद हमें कौन पिंड देगा। राजा का अपने राज्य, धन, सम्पत्ति, भाई, बांधव आदि किसी से भी संतोष नहीं होता था। राजा को बस यही सोचता था कि मेरे बाद मुझे कौन पिंड देगा। पितरों और देवताओं का ऋण मैं बिना पुत्र के कैसे चुका पाउंगा? यह सब सोचकर राजा नित्य चिंतित रहता था, कि मैंने पूर्वजन्म में कौन से बुरे कर्म किये होंगे कि इस जन्म में मुझे पुत्र संतान की प्राप्ति नहीं हो रही है। एक बार तो राजन ने अपने शरीर को त्यागने या आत्महत्या का भी निश्चय कर लिया था, परन्तु फिर आत्महत्या को महान पाप समझकर उसने ऐसा ना करने का निश्चय कर लिया।
एक दिन राजा ऐसा ही विचार करता हुआ, अपने घोड़े पर बैठकर वन की ओर चल दिया। वहां पर सुन्दर पक्षियों और हरे-भरे वृक्षों को देखने लगा। उसने देखा वन में अनेकों प्रकार के पशु-पक्षी अपने बच्चों के साथ घूम रहे हैं। वे कितने प्रसन्न हैं। पशु-पक्षियों को देखते-देखते वह खो सा गया। वह चिंतन करने लगा कि उसका पुत्र क्यों नहीं है? मैंने अनेक प्रकार के यज्ञ किये, ब्राहमणों को स्वादिष्ट भोजन से संतुष्ट किया, फिर भी मुझे पुत्र की प्राप्ति क्यों नहीं हुई, मुझसे अच्छे तो पशु-पक्षी ही हैं जो अपने बच्चों के साथ कितने प्रसन्न हैं।
वन में ऐसे ही विचार करते-करते राजा को आधा दिन बीत गया। उसे प्यास लगने लगी। वह पानी की खोज में इधर-उधर भटकने लगा। कुछ देर बाद राजा ने एक सरोवर देखा। उस सरोवर में अनेक कमल खिले हुए थे। सारस, हंस आदि के झूंड सरोवर में घूम रहे थे। उस सरोवर के चारों ओर मुनियों के आश्रम बने हुए थे। ये सब दृश्य देखकर राजा सुकेतु के बांये अंग फरकने लगे, एक अच्छा शकुन मानकर राजा घोड़े से उतरे और मुनियों को देखकर उन्हें साष्टांग दंडवत किया। राजा का नम्र और आदरपूर्ण व्यवहार देखकर मुनि अत्यंत प्रसन्न हुये। तब उन्होंने राजा से कहा, हे राजन! अपने मन की बात हमसे कहो, आप इस वन में अकेले कहां भटक रहे हों?
राजा ने हाथ जोड़कर पूछा-मुनिवर आप कौन हैं? इस सुन्दर स्थान पर किस लिए आये हैं? कृपया करके मुझे बताइये?
मुनि ने बताया-आज पौष मास की पुत्रदा एकादशी है, हम सभी व्रती हैं और सरोवर में स्नान करने के लिए आये हैं।
राजा ने कहा-मुनिवर! मेरे कोई संतान नहीं है, कृपया मुझे पुत्र प्राप्ति का वरदान दीजिए।
मुनि बोल-राजन्! आज पौष मास की पुत्रदा एकादशी है, आप इस व्रत को कीजिए, भगवान श्री हरि नारायण की कृपा आप पर अवश्य होगी, आपको पुत्र की प्राप्ति होगी।
मुनियों के वचन को सुनकर राजा ने वहीं मुनियों के आश्रम में रहकर पुत्रदा एकादशी का व्रत किया और द्वाद्वशी तिथि को व्रत का पारण करके अपने महल को लौट गये।
कुछ समय बीतने के बाद रानी गर्भवती हो गयी और 9 वें माह में उसने एक पुत्र को जन्म दिया। आागे चलकर वह बालक शूरवीर, प्रजापालक व यशस्वी राजा बना।
भगवान श्री कृष्ण ने आगे कहा- हे राजन! पुत्र की प्राप्ति के लिए, पौष मास की एकादशी का व्रत करना चाहिए। जो भी इस कथा को पढ़ता है, सुनता है और इस व्रत को करता है, उसे पुत्र का प्राप्ति होती है और अंत में वह विष्णु के धाम चला जाता है।
बोलो श्री हरि नारायण भगवान की जय। हरि नमः हरि नमः हरि नमः
ज्यों तिल माहि तेल है, ज्यों चकमक में आग
तेरा साईं तुझ में हैं, जाग सके तो जाग।
कबीरदास जी कहते हैं कि जैसे तिल के अन्दर तेल होता है, और चकमक पत्थर के अन्दर आग होती है, उसी प्रकार ईश्वर भी हमारे अन्दर उपस्थित है, यदि तू देख सकता हो तो नींद से जाग कर उसे देख।
तो साथियों आपको ये कथा कैसी लगी, कमैंटस करके बताना न भूले, यदि कोई जिज्ञासा हो तो कमैंटस कर सकते हैं, और यदि आप नित्य नये आलेख प्राप्त करना चाहते हैं तो मुझे मेल करें। अगले आलेख तक के लिए मुझे आज्ञा दीजिए नमस्कार जयहिन्द।
प्रस्तुति: संजय कुमार गर्ग, एस्ट्रोलाॅजर, वास्तुविद् 8791820546 (Whats-app)
sanjay.garg2008@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं :
एक टिप्पणी भेजें
आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुमूल्य है!