उत्पन्ना देवी एकादशी व्रत कथा (2024)

https://jyotesh.blogspot.com/2024/11/utpanna-devi-ekadashi-vrat-katha-2024.html

मार्गशीर्ष या अगहन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी
कहते हैं। इस एकादशी का दूसरा नाम उत्पत्ति एकादशी भी प्रसिद्ध है। इसी दिन मां एकादशी का जन्म हुआ था। इसलिए यह एकादशी उत्पन्ना देवी या उत्पत्ति देवी एकादशी भी कहलाती है। यह एकादशी पिछले जन्मों के पापों को समाप्त कर देती है। 

विष्णु पुराण के अनुसार यह एकादशी स्वयं अपने आप में भगवान विष्णु का स्वरूप मानी जाती है वैसे तो सभी एकादशियां भगवान विष्णु जो जगत के पालनहार हैं, उन्हीं का समर्पित हैं।

उत्पन्ना देवी एकादशी व्रत कथा (2024)

धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से कहा प्रभु! आपने देवउठान एकादशी की कथा सुनाई। कृपया करके अगहन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी के बारे में भी बताइये। उसका क्या नाम है? वह किसलिए प्रसिद्ध है।

भगवान श्री कृष्ण ने कहा सतयुग में मुर नाम का एक राक्षस था, वह अत्यंत भयंकर तथा बलवान था। मुर राक्षस ने आदित्य, वायु, अग्नि, इन्द्र सहित सभी देवताओं को युद्ध में पराजित कर इन्द्रपुरी से भगा दिया। तब इन्द्रादि सभी देवताओं ने भगवान शिव से सारी बात बतायी कि सारे देवता राक्षस मुर के भय से आतंकित होकर मृत्यु लोक में घूम रहे हैं हमें राक्षस मुर से मुक्ति का उपाय बताइये। तब भगवान शिव ने देवताओं को जगत के पालनहार भगवान विष्णु के पास जाने के लिए कहा।

तब सारे देवता भगवान विष्णु की शरण में गये और उनसे सारी बात बतायी। क्षीर सागर में निवास करने वाले भगवान विष्णु ने कहा-

हे इन्द्र! ये राक्षस कौन है इसके बारे में विस्तार से बताइये। तब इन्द्र ने कहा प्राचीन काल में नाड़ीजंघ नाम का एक राक्षस था। उसी का यह मुर नाम का पुत्र है यह चन्द्रावली में निवास करता है, इसी राक्षस मुर ने सभी देवताओं को हरा कर स्वर्ग से निकाल दिया है, स्वयं सूर्य बन गया है और स्वयं मेघ बन कर वर्षा करता है, यह वायु बनकर भी बहता है। यह अत्यंत शक्तिशाली है इससे हमारी रक्षा कीजिए।

इन्द्रादि देवताओं की बात सुनकर भगवान विष्णु मुर राक्षस से युद्ध करने के लिए चल दिये। भगवान विष्णु और मुर राक्षस में भयंकर युद्ध हुआ। परन्तु मुर पराजित नहीं हुआ। दोनांे का मल्ल युद्ध भी हुआ, फिर भी मुर पराजित नहीं हुआ। पुराणों के अनुसार यह युद्ध दस हजार वर्षों तक चलता रहा। लेकिन मुर नहीं हारा। भगवान विष्णु अपनी थकान मिटाने के लिए बद्रिकाश्रम चले गये और योग निद्रा में सो गये। राक्षस मुर उनके पीछे-पीछे उसी गुफा में आ गया और योग निद्रा में सोये भगवान विष्णु का मारने के लिए उद्यत हुआ। लेकिन तभी भगवान विष्णु के शरीर से एक कांतिमान रूपवती देवी प्रगट हुई। देवी ने मुर को युद्ध के लिए ललकारा, वह युद्ध के लिए उद्यत हुआ, और देवी ने राक्षस मुर को युद्ध में पराजित कर मार दिया।

जब भगवान विष्णु योगनिद्रा से उठे तो उन्होंने मुर का मरा पाया, और देवी से सब बातों को जाना। उन्होंने देवी से कहा आपका जन्म एकादशी के दिन हुआ है अतः आप मां उत्पन्ना एकादशी के नाम से पूजी जायेगी मेरे सारे भक्त आपके भक्त होंगे और आपकी पूजा करेंगे। जो इस इस एकादशी का व्रत करेगा उसके पिछले जन्म के सारे पाप समाप्त हो जायेेंगे। 

बोलो लक्ष्मी नारायण भगवान की जय। हरि नमः हरि नमः हरि नमः

जात-पात  न  पूछे  कोई, 
हरि को भजे सो हरि का होइ

तो  साथियों आपको ये कथा कैसी लगी, कमैंटस करके बताना न भूले, यदि कोई जिज्ञासा हो तो कमैंटस कर सकते हैं, और यदि आप नित्य नये आलेख प्राप्त करना चाहते हैं तो मुझे मेल करें। अगले आलेख तक के लिए मुझे आज्ञा दीजिए नमस्कार जयहिन्द।
प्रस्तुति: संजय कुमार गर्ग, एस्ट्रोलाॅजर, वास्तुविद् 8791820546 (Whatsapp)
sanjay.garg2008@gmail.com

कोई टिप्पणी नहीं :

एक टिप्पणी भेजें

आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुमूल्य है!