तुम घृणा, अविश्वास से मर जाओगे
विष पीने के अभ्यास से मर जाओगे
औ बूंद को सागर से लड़ाने वालों
घुट-घुट के स्वयं प्यास से मर जाओगे।
विष पीने के अभ्यास से मर जाओगे
औ बूंद को सागर से लड़ाने वालों
घुट-घुट के स्वयं प्यास से मर जाओगे।
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पंछी यह समझते हैं चमन बदला है
हॅंसते हैं सितारे कि गगन बदला है,
श्मशाम की खामोशी मगर कहती है
है लाश वही, सिर्फ कफन बदला है।
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क्यों प्यार के वरदान सहन हो न सके
क्यों मिलन के अरमान सहन हो न सके,
ऐ दीप शिखा! क्यों तुझे अपने घर में
इक रात के मेहमान सहन हो न सके।
क्यों मिलन के अरमान सहन हो न सके,
ऐ दीप शिखा! क्यों तुझे अपने घर में
इक रात के मेहमान सहन हो न सके।
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हंसता हुआ मधुमास भी तुम देखोगे
मरूस्थल की कभी प्यास भी तुम देखोगे,
सीता के स्वयंवर पै न झूमो इतना
कल राम का वनवास भी तुम देखोगे।
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मंझधार से बचने के सहारे नहीं होते
दुर्दिन में कभी चांद सितारे नहीं होते,
हम पार भी जाये तो भला जायें किधर से
इस प्रेम की सरिता के किनारे नहीं होते।
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यह ताज नहीं, रूप की अंगड़ाई है
गालिब की गजल पत्थरों ने गाई है,
या चाॅंद की अलबेली दुल्हन चुपके से
यमुना में नहाने को चली आयी है।
गालिब की गजल पत्थरों ने गाई है,
या चाॅंद की अलबेली दुल्हन चुपके से
यमुना में नहाने को चली आयी है।
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प्यार दशरथ है सहज विश्वासी
जबकि दुनिया है मंथरा दासी,
किन्तु ऐश्वर्य की अयोध्या में
मेरा मन है भरत-सा संन्यासी।
प्यार दशरथ है सहज विश्वासी
जबकि दुनिया है मंथरा दासी,
किन्तु ऐश्वर्य की अयोध्या में
मेरा मन है भरत-सा संन्यासी।
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मैं आग को छू लेता हूं चन्दन की तरह
हर बोझ उठा लेता हूं कंगन की तरह
यह प्यार की मदिरा का नशा है, जिसमें
कांटा भी लगे फूल के चुम्बन की तरह।
हर बोझ उठा लेता हूं कंगन की तरह
यह प्यार की मदिरा का नशा है, जिसमें
कांटा भी लगे फूल के चुम्बन की तरह।
संकलन-संजय कुमार गर्ग sanjay.garg2008@gmail.com
मुक्तक/शेरों-शायरी के और संग्रह
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