कुंअर बैचेन के सदाबहार मुक्तक

कुंअर बैचेन के सदाबहार मुक्तक

देह   छूटते   प्राण   के    प्रण    हुए

फूल थे  हम कभी, धुल का कण हुए
याद   की  एक  श्रृंगार  शाला  में हम
खुद ही चेहरा हुए, खुद ही दर्पण हुए। 
 
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रूप   की    चांदनी  में  नहाता   रहा
वो  तिमिर में  कहीं  जगमगाता  रहा
प्यार  की  उंगलियो से जरा छू लिया
देर   तक  आईना  गुनगुनाता   रहा। 
 
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कुंअर बैचेन के सदाबहार मुक्तक
 
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 अश्क जब  चल दिये आंख रोने लगी
याद  फिर  एक  माला  पिरोने  लगी
सांस लेने  लगी आखिरी  हिचकियां
जिन्दगी  आखिरी  नींद  सोने  लगी।
 
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जन्म से  ही अमर प्यास है जिन्दगी
प्यास की आखिरी सांस है जिन्दगी
मौत ने ही  जिसे बस निकाला यहां
उंगलियों में फंसी फांस है जिन्दगी।
 
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आपने शीश पर हाथ जब धर दिया
यों लगा भूमि को एक अम्बर दिया
युग-युगों से यहां मैं बुझा दिया था
आपने फिर  मुझे  आरती कर दिया
 
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कुंअर बैचेन के सदाबहार मुक्तक

सांस का हर सुमन है वतन के लिए
जिन्दगी  ही हवन है वतन के लिए
कह गयी  फांसियों  में  फंसी गर्दनें
यह  हमारा  नमन है वतन के लिए।
 
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जब  अंधेरे  बढ़े  रोशनी  घट  गयी
सामने   से   हमारे  हंसी  हट  गयी
मौत से तो वो बचकर निकलती रही
जिन्दगी  सांस की रेल से कट गयी।
 
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बुलबुलों की तरह फूट जाते हैं हम
तीर  की  ही  तरह छूट जाते हैं हम
पत्थरों  को  तो  ठोकर  लगाते रहे
फूल  की  ठेस से टूट जाते हैं हम। 

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कुंअर बैचेन के सदाबहार मुक्तक
गीत  है  आंसुओं से भरी गागरी
प्यार की पांखुरी दर्द की बांसुरी
बीच से ही इसे आप मत तोड़िये
गीत है प्रीत की एक अंत्याक्षरी।
 
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जब कि हम बीतते दिन भुलाने लगे
आप  फिर   से हमे  याद आने लगे
जख्म भी फूल बनकर महकने  लगे 
  आंसुओं  के  अधर   गुनगुनाने लगे।  
 -कुंअर बैचेन
संकलन-संजय कुमार गर्ग sanjay.garg2008@gmail.com

मुक्तक/शेरों-शायरी के और संग्रह 
प्यास वो दिल की बुझाने कभी.....मुक्तक और रुबाइयाँ !

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