एक थी गुलाबो....! (पुनर्जन्म रहस्य कथा) अन्तिम भाग

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कुलदीपक घर के अंदर ऐसे घुसता चला गया, जैसे वो वहां से कितना पुराना परिचित है, अपने कमरे में प्रवेश करते ही वह वहां खड़ी बहुओं को देख कर ठिठका......और फिर जोर से, मुंह-नजरें नीचे करके खांसा (पहले समय में ससुर, जेठ घर में अपनी उपस्थिति अपनी बहुओं को दर्शाने के लिए खांसते थे)।
 
गुलाबो......गुलाबो कहां होे तुम..................फिर वह जोर से बोला!
सारी बहुऐं एक ओर हो गयी, सामने उसकी पूर्वजन्म की पत्नि गुलाबो सिर पर पल्लू ढकेे बैठी थी।
 
एक अट्ठारह वर्ष के सुन्दर युवक को देखकर सारी बहुऐं चौंक पड़ी, क्या?? ये हमारे ससुर जी हैं?????????
 
अरे!! कलमुईयों....घुंघट निकालों....तुम्हारे ससुर जी आये हैं....वृद्धा ने नीची नजरें किये अपनी बहुओं से जोर से कहा!!
सभी बहुओं ने सिर पर पल्लू रखकर, बारी-बारी से कुलदीपक के पैर छूए, और कुलदीपक ने किसी बुजुर्ग की भांति उन्हें आशीर्वाद दिया।
कुलदीपक पलंग के पास पहुंचा और पलंग के एक ओर वृद्धा से थोड़ी दूरी पर बैठते हुए धीरे से डबडबाई आंखों को पौंछता हुआ बोला! गुलाबो....... कैसी हो... तुम???
 
वृद्धा की आंखे भर आयी, लड़खड़ाती आवाज और रूधें गले से बोली-जोरावर के पिताजी 18 साल प्रतीक्षा करायी आपने?? कहते हुए वृद्धा ने अपने झुर्रिदार हाथों से शरमाते हुए कुलदीपक का हाथ पकड़ लिया। (सास अपने पूर्वजन्म के पति का हाथ पकड़ने में संकोच कर रही थी, कदाचित् उसके संस्कार बहुओं के सामने पति का हाथ भी पकड़ने की अनुमति नहीं देते थे।)
 
मैंने कहा था ना.......आपके अंतिम समय में......मैं योगिनी हूं (योगी का स्त्रीलिंग) तुम जहां भी जन्म लोगे, मैं वहां से तुम्हे बुला लूंगी...वृद्धा अपने पति कुलदीपक का हाथ सहलाते हुए बोली!
और अब पुरानी सिकवे, शिकायतें कहीं सुनी जा रही थीं, बहुएं आश्चर्य से मुंह खोले कभी उस युवक की ओर देखती, तो कभी अपनी सांस की ओर देख रही थीं। अचानक कुलदीपक अपनी छोटी बहू की ओर मुड़ा..... और बोला-
भारतीऽऽऽ......कैसी है तूं......??? आज चाय नहीं पिलायेगी, इलायची, अदरक वाली????
अचानक अपना नाम कुलदीपक के मुंह से सुनकर व एकदम हड़बड़ा गयी.......जी......जी....पि.......पिता जी लाती हूं, वह एकदम वहां से भागी।
सुमित्रा....., यशोदा..... उनमें से दो बहुयें भी अपना नाम सुनकर चौंक गयी। तुम्हारे हाथ के आलू के परांठे, मक्खन, चटनी के साथ खाने का बहुत मन कर रहा हैं, अब कुलदीपक उन बहुओं की ओर मुंह करके बोला!!!!
 
अरे!!!! पिताजी को तो वास्तव में हमारे हाथ के आलू के परांठे बहुत पसंद थे, इन्हें कैसे पता चला???? हड़बड़ाई बहुओं ने कहा जी....!! जी..जी....पिताजीऽऽऽ.....और तेजी से वहां से चली गयी....
 
गुलाबों!!! मेरे बच्चों, पोत्रों-प्रपोत्रों-पोत्रियों-प्रपोत्रियों सभी को बुलाओ, मैं उनसे मिलना चाहता हूं, कुलदीपक ने वृद्धा से कहा!
 
तीसरा दृश्य
कमरे में कुलदीपक के पांचों पुत्र अपनी पत्नियों और बच्चों के साथ बैठे हैं। कुलदीपक के साथ गाड़ी में आये तीनों व्यक्ति भी कमरे में, कुलदीपक के पिता के साथ उपस्थित थे। 
 
कुलदीपक बोला-बच्चों!! मैं पूर्व जन्म का तुम्हारा पिता हूं, ये मेरा दूसरा जन्म है। अधिकतर लोग पूर्व जन्म की स्मृति भुला देते हैं, परन्तु मैं नहीं भूला पाया, कदाचित् यह तुम्हारी मां का प्यार था, उसकी साधना थी, कि उसने मेरे पूर्वजन्म की स्मृति को विस्मरण नहीं होने दिया, जबकि मेरे इस जन्म के पिताजी ने लाखों प्रयास किये, फिर भी अपने पूर्वजन्म की याद मैं नहीं भुला पाया। इस बात को सुनकर कुलदीपक के इस जन्म के पिता की आंखों में भी आंसू आ गये। कुलदीपक आगे बोला-
मैं इस बात को प्रमाणित करने के लिए आपको पूर्वजन्म की किसी भी परमगुप्त बात को बता सकता हूं। आप मुझसे पूछकर देख सकते हैं।
मेरे बच्चों!! मैं तुमसे कुछ लेने या मांगने नहीं आया, मेरे इस जन्म के पिता इतने धनवान हैं कि मेरे पूर्वजन्म जैसे हजारों-लाखों ‘‘फतेह सिंह’’ (कुलदीपक का पूर्वजन्म का नाम) खरीद सकते हैं। मैं तो यहां केवल अपनी पत्नि के उस संकल्प को पूरा करने के लिए आया हूं जो उसने मुझसे मरते समय लिया था। कि ‘‘मुझे तुम्हारी गोद में ही दम तोड़ना है!’’
 
मेरे पुत्रों गीता में भगवान श्री कृष्ण ने लिखा है- 
"जातस्य हि ध्रुवो मृत्युः ध्रुवं जन्म मृतस्य च।
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि।।"
अर्थात जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है, और मृत्यु के पश्चात पुर्नजन्म भी निश्चित है, इस अनिवार्य कार्य में तुम्हे हर्ष-विषाद नहीं करना चाहिए।
 
कुलदीपक की अनेकों प्रकार से उसके पुत्र-बहुओं ने परीक्षा ली, पूर्वजन्म से संबंधित प्रश्न पूछे उन सबका कुलदीपक ने शत-प्रतिशत सही उत्तर दिया।
अब वे आश्वस्त थे कि वास्तव में ये उसके पिता का पूर्नजन्म ही है।
वृद्धा गुलाबो कुलदीपक की गोद में सिर रखकर लेट गयी। उसकी सांसे तेजी से चल रही थीं। वृद्धा का अंतिम समय आ गया था। वह कुलदीपक का हाथ पकड़े हुये अपनी कंपकंपाती आवाज में बोली!!
क्या......क्या....आप चाहते हैं हम फिर एक हो?
 
हां......हां....... गुलाबो!!! मैं भी यहीं चाहता हूं...........पर ये कैसे संभव है??? कुलदीपक ने रूधे हुए गले से उसका हाथ पकड़ते हुए कहा!!
मैंने कहां था ना.... मैं योगिनी हूं......मरने के बाद फिर जन्म लूंगी.....और फिर तुम्हे अपने पास बुला लूंगी..........वृद्धा ने एक रहस्यमयी मुस्कुराहट के साथ उसका हाथ पकड़े-पकड़े कहा!!!!!
लेकिन तुम्हे प्रतीक्षा करनी होगी, वैसी......, जैसी.... मैंने तुम्हारे लिए की है?
बोलोऽऽ करोगे ना.........मेरी प्रतीक्षा..........या भूला दोगेऽऽ?? वृद्धा ने कुलदीपक के चेहरे पर प्रश्नवाचक दृष्टि डालते हुए पूछा!!
 
मैं संकल्प  लेता हूं, मैं तुम्हारी प्रतीक्षा करूंगा और जब तुम पुनः जन्म लोगी, तब तुम्हारे साथ ही विवाह करूंगा..........अन्यथाऽऽ....। कुलदीपक की बात को कांटते हुए वृद्धा बोली.........अन्यथा कुछ नहीं......। मैं पुनः तुम्हारी गुलाबो अगले जन्म में बनूंगीऽऽऽऽ कहते-कहते वृद्धा का सिर कुलदीपक की गोद में लुढ़क गया.................वो जा चुकी थी, पुनः जन्म लेने के लिए........
 
कहीं सुदूर गांव में एक स्त्री को प्रसव पीड़ा होने लगी......और उसने एक बच्चे को जन्म दिया। घर में बधाईयां बजने लगी, बधाई हो....., बधाई हो........, पांच भाइयों की बहना आयी है।
नवजात लड़की टकटकी लगाये चारों ओर देख रही थी, उसके चेहरे पर रूदन नहीं था बल्कि एक रहस्यमयी मुस्कुराहट थीं, मानोें कह रही हो.....
ये जो जनम-जनम का है साथ हमारा
हर जनम में मिले और बिछड़े हैं हम।
कदाचित् कथा समाप्त हो गयी????????
 
प्रस्तुति: संजय कुमार गर्ग, लेखक, वास्तुविद्, एस्ट्रोलाॅजर 8791820546 Whats-app
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