रायल्स राॅयल कार सड़क पर दौड़ रही थी। जिसमें चार लोग सवार थे, उसमें एक 18 साल का सुन्दर युवक बैठा था, हाथ में स्वीट्जरलैंड की घड़ी, गले में सोने की मोटी चैन, हाथ में हीरे की अंगूठी, शरीर पर महंगे विदेशी कपड़े, गाड़ी के फर्श पर लाखों रूपये का उसका एप्पल का फोन पड़़ा था, शायद वो उसकी सीट से छिटक कर गिर गया था। इन सभी विलासिताओं की चीजों में युवक की कोई रूचि दिखाई नहीं दे रही थी। वह गाड़ी की सीट पर अधलेटा पड़ा था और अपनी कोहनी विंडों पर टिकाये बाहर की ओर टकटकी लगाये देख रहा था। उसके चेहरे पर उदासी थी, लगता था इतनी महंगी विलासिता की चीजें भी उसके चेहरे पर खुशी-संतुष्टि-संतोष लाने में असफल थी। यह युवक था अरबपति-खरबपति सेठ करोड़ीमल का एकमात्र पुत्र, एक मात्र संतान।
गाड़ी के दूसरी ओर एक युवती बैठी थी, जो लगातार युवक के चेहरे को पढ़ने का प्रयास कर रही थी और उसे अपनी एक डायरी पर नोट कर रही थी। शायद यह युवती एक साइकेट्रिट थी। गाड़ी की अगली सीट पर एक छह-सात फुट का लंबा-चैड़ा हट्ठा कट्टा आदमी बैठा था, उसके हाथ में एक कारबाइन राइफल थी और कमर में एक पिस्टल लगी हुई थी। वह भी युवक को बार-बार अपनी कनखियों से देख रहा था। यह युवक का अंगरक्षक था। गाड़ीवान (ड्राइवर) एक बुजुर्ग व्यक्ति था, रोबिले चेहरे और बड़ी-बड़ी मूंछों वाला, वह गाड़ीवान भी अपने शीशे से उस युवक को बार-बार देख रहा था।
इस सुन्दर से युवक का नाम कुलदीपक था, समस्या यह थी, कि इस युवक को बचपन से ही अपने पिछले जन्म की स्मृति थी, चूंकि यह सेठ की एकमात्र संतान थी, अतः सेठ ने अपने पुत्र की पूर्वजन्म की याद मिटाने के लिए हर संभव उपाय किये, पूजा-पाठ, हवन, तंत्र-मंत्र, टोने-टोटकों के साथ-साथ सम्मोहन, हिप्नोटिज्म के आधुनिक उपाय तक किये, उसने कुछ नहीं छोड़ा, कुछ दिन ठीक रहने के बाद, फिर कुलदीपक को पूर्वजन्म की याद आने लगती थी, और वह अपने पुराने स्थान पर जाने की जिद करता था। उसका पुत्र पूर्वजन्म में अपना घर जिस क्षेत्र के गांव में बताता था, उस क्षेत्र से भी उस युवक को सैकड़ों किलोमीटर दूर रखा जाता था। परन्तु इंसान के करने से क्या होता है, होता वहीं है जो ईश्वर चाहता है, नियति हमें वही खींच ले जाती है, जहां उसे ले जाना होता है। जिस सड़क से उन्हें जाना था उस सड़क पर काम चलने के कारण वह सड़क बन्द थी, अतः ड्राईवर को गाड़ी दूसरे रास्ते से ले जानी पड़ रही थी।
अचानक कुलदीपक बाहर एक पुराना मंदिर देख कर चैंका और वह अपनी बाजू सीधी करके बाहर की ओर गौर से देखने लगा, दौड़ती गाड़ी से एक के बाद एक बाहर की चीजों को देखकर वह सचेत होकर सीधा बैठ गया और दूसरी ओर की विंडों से चैंक कर बाहर की ओर देखने लगा, गाड़ी एक गांव के पास से जा रही थी, अचानक वह जोर से चिल्लाया-गाड़ी रोको.........रोको...रोको!!!!!
चरररररर...........तेज आवाज के साथ गाड़ी रूकी। सबने उसकी ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा और गाड़ी रूकवाने का कारण जानने का प्रयास किया कि ...वह गाडी की सीट से साइकेट्रिट को एक साइड करता हुआ, तेजी से दरवाजा खोलकर बाहर निकला और जोर से चिल्लाया!!
यही है......यही है.......यही है मेरा गांव.............गुलाबोऽऽ........गुलाबोऽऽऽ..........गुलाबोऽऽऽऽ
वह चिल्लाता हुआ गांव के अंदर भाग गया। तीनों उसे पुकारते ही रह गये।
दूसरा दृश्य
एक बड़ा सा हाॅलनुमा कमरा है, जिसमें पुराने समय की सुन्दर सजावट हो रही है, सजावट ऐसी की आज की सजावट भी उसके सामने कुछ नहीं। पुराने समय के एक सुन्दर नक्काशीदार पलंग पर एक वृद्धा अधलेटी हुई है, उसकी आयु सौ वर्ष के आसपास होगी, उसके हाथ में गोमुखी-माला है, और वह मन ही मन जप कर रही है, उसको चारों ओर उसकी बहुओं ने घेरा हुआ है। कदाचित् यही गुलाबो है????
देखों....देखों वो आ रहे हैं.............वृद्धा अपनी अर्धउन्लिप्त आंखों से बड़बड़ाये जा रही थी, और जप की माला भी एक निश्चित लाय-गाल-गति से चल रही थी।
देखों....देखों वो आ रहे हैं.............वृद्धा अपनी अर्धउन्लिप्त आंखों से बड़बड़ाये जा रही थी, और जप की माला भी एक निश्चित लाय-गाल-गति से चल रही थी।
मांजी आप आराम कीजिए, आप बहुत थक गयी हैं, उसी बड़ी बहू ने कहा!
नहीं......नहीं.....ऽऽऽऽ आज सोने का दिन नहीं है, आज वो आ रहे हैं, आज वो आ रहे हैं..........!!!! वृद्धा जोर से बोली!
अभी तक तो माॅजी कहती थीं, वो एक दिन जरूर आयेंगे, परन्तु आज कह रही हैं, वो आ रहे हैं..............लगता है मांजी की मानसिक स्थिति आज ज्यादा ही खराब हो गयी है-एक बहू ने दूसरी बहू के कान में फुसफुसाया।
मैंने कहा था ना, वो एक दिन जरूर आयेंगे..............देख लेना तुम सारी.........मैं पागल नहीं हूं.........वृद्धा ने अपनी बहुओं की ओर, अपने झूर्रिदार चेहरे के अंदर धंसी आंखों को निकालते हुए कहा!!!!
गुलाबोऽऽऽऽऽऽ गुलाबोऽऽऽऽऽऽऽऽऽ कहां है तू गुलाबो????
अचानक हवेली के बाहर से तेज आवाज आयी।
आवाज सुन कर सारी बहुयें चौंक गयी।
देखोंऽऽऽऽ देखोंऽऽऽऽ वो आ गये.......वो आ गये। वृद्धा जल्दी से एकदम सीधी बैठ गयी, और अपने शरीर पर पड़ी बेतरतीब साड़ी जल्दी-जल्दी ठीक करने लगी और जल्दी से सिर पर पल्ला ढक कर शतवर्षीय वृद्धा ऐसे बैठ गयी, जैसे कोई नवविवाहिता बहू बैठी हो।
अब उसकी पथरायी आंखे दरवाजे पर टकटकी लगा कर बैठ गयीं और सारी बहुओं की भी आश्चर्य मिश्रित दृष्टि दरवाजे पर टिक गयी।
शेष कहानी कल पढ़िए............
प्रस्तुति: संजय कुमार गर्ग, लेखक, वास्तुविद्, एस्ट्रोलाॅजर 8791820546 Whats-app
(लेख
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