मैं स्कूल से अपने घर लौट रहा था। मैंने देखा मेरा एक मित्र स्कूटी मैकेनिक से लड़ रहा है, कि तूने मेरी स्कूटी का हैंडल टेढा कर दिया है, मैकेनिक बार-बार कह रहा था कि नहीं भैया! मैंने तुम्हारी स्कूटी के टेढ़े हैंडल का सीधा किया है आप चला कर तो देखो? मेरा मित्र कह रहा था मैंने चला कर देख लिया ये हैंडल पहले ठीक था अब ये टेढ़ा है, इसे पहले जैसा ही करो! मैं खड़़ा हुआ उनकी बात सुन रहा था, मैंने पहले जाकर उसकी स्कूटी का हैंडल चेक किया, जो कि एक दम सीधा था, मैंने अपने मित्र से कहा आओ! स्कूटी पर बैठों, और उसे बैठा कर मैं अपने घर ले आया और उससे बोला बैठों मैं तुम्हें समझाता हूं ये क्या मामला है, मेरा मित्र अब मुझसे नाराज था कि मैंने उसका हैंडल ठीक क्यों नहीं होने दिया। तब मैंने अपने मित्र का समझाते हुए बताया-
मैंने तेरी स्कूटी पहले चलायी है और उस समय उसका हैंडल वास्तव में टेढ़ा था, अब तेरी स्कूटी का हैंडल सीधा है। क्योंकि तूने काफी समय तक टेढ़े हैंडल की स्कूटी चलायी, इस लिए तुम्हे टेढ़े हैंडल की स्कूटी ही सही लगने लगी, और जब तुम्हारे स्कूटी का हैंडल सीधा हो गया तो वो तुम्हे टेढ़ा लग रहा है, जो कि वास्तव में नहीं है, कुछ देर बाद मित्र को मेरी बात समझ आ गयी, और वो कुछ देर मेरे पास बैठकर अपनी स्कूटी लेकर चला गया।
पाठकजनों! आपको भी मेरी बात समझ आ गयी होगी, यही परिवर्तन है, चाहे वो अच्छे के लिए हो, चाहे बुरे के लिए वो हमेशा हमें मानसिक कष्ट देता है, क्योंकि हमारा मन जिस ढर्रे पर चलने का आदि हो जाये वो उसमें परिवर्तन नहीं चाहता चाहे वो अच्छे के लिए ही क्यों ना हो। दूसरा उदाहरण देखिए-
सरकार ने रेलवे लाइन व खेत आदि खुले स्थानों पर शौच जाने को प्रतिबंधित कर दिया है, रेलवे पुलिस ने कई बार रेलवे लाइन पर शौच करने वालों पर डंडे भी बजायें हैं, सरकार घर में शौचालय बनाने के लिए अनुदान भी दे रही है, परन्तु ये परिवर्तन भी लोगों को पीड़ा दे रहा है। एक गांव के कुछ व्यक्तियों से मैंने बात की तो उनकी बात सुनकर मेरे मुंह से हंसी का जोरदार ठहाका निकला, उन्होंने कहा ‘‘साहब जी मुंह में गुटका भर कर, या फिर बीड़ी का गहरा कस खींचते हुए, जो ट्....... फिरने में मजा आवे है, वो घरों नहीं आता, घरों ते घर वाली मारेगी, यां ये सा.... पुलिस वाले मारे हैं, सरकार ना या अच्छा नहीं कियो।’’ बताइये मित्रों! ये परिवर्तन भी पीड़ा दे रहा है। क्योंकि हमारा मन परिवर्तन का हमेशा नापसंद करता है।
बच्चे जब बाल्यवास्था से किशोरावस्था में प्रवेश करते हैं तो लड़कों के चेहरे पर हल्के बाल आने लगते हैं, आवाज भारी होने लगती है, लड़कियों में भी शारीरिक परिवर्तन आने लगते हैं, चिड़ियाओं की तरह चहकने वाली बच्चियों पर तरह-तरह की हिदायतें व बन्दिशें माताओं द्वारा लगायी जाती हैं, समझदार माता-पिता लड़कों की निगरानी भी बड़ा देते हैं कहीं व गलत संगत में ना पड़ जाये, परन्तु बचपन से किशोरावस्था में प्रवेश करते इन बच्चों को ये सलाह-हिदायतें बहुत नागवार गुजरती हैं, वो इस परिवर्तन को बड़ी मुश्किल से स्वीकार करते हैं। जबकि माता-पिता की ये हिदायतें गलत नहीं होती उनके उम्र-अनुभव की ये सीख होती हैं।
सन्यासी स्तर के साधु भी एक स्थान पर टिक कर नहीं रहते, उनके गुरूओं द्वारा उन्हें एक स्थान ना रूकने व स्थान परिवर्तन करते रहने की हिदायतें दी जाती हैं ताकि उन्हें स्थान विशेष व वहां के व्यक्तियों से उनका लगाव ना हो पाये, जो कि आगे चलकर उनके सन्यास व मोक्ष के मार्ग में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
मैं स्वयं एक एस्ट्रोलाॅजर-वास्तुविद् हूं अतः ज्योतिष का भी एक उदाहरण देने लोभसंवरण नहीं कर पा रहा हूं। प्रबुद्ध पाठकों!! ज्योतिष में एक योग होता है ‘ग्रह-राशि परिवर्तन योग’ इसमें एक-दो या ज्यादा ग्रह एक दूसरे की राशि या घर में बैठे हुये होते हैं, इसका परिणाम ये होता है कि जातक के जीवन में परिवर्तन बहुत ज्यादा होते रहते हैं, वह अपने काम-धंधे, रहने के स्थान आदि ना चाहकर भी बदलता रहता है, इसका परिणाम ये होता है कि उसे एक जगह से-एक काम से मोह नहीं रहता, और अंत में ये परिवर्तन ही उसे जीवन की मोह-माया से दूर ले जाते हैं।
इसी प्रकार नदियों का जल हमेशा परिवर्तित होता रहता है क्योंकि हमेशा बहता-चलता रहता है, उसमें ताजगी व स्वच्छता बनी रहती है, और तालाब का पानी गंदला जाता है क्योंकि वो एक स्थान पर रूक जाता है, मौसम भी हर दिन एक सा नहीं रहता, वो भी बदलता रहता है, ऋतुऐं भी परिवर्तित होती रहती हैं। वो भी एक समय में बदल जाती हैं। ये परिवर्तन पेड़-पौधौं में भी दिखायी देता है।
हमारे शरीर में भी नित्य परिवर्तन होते रहते हैं, शरीर के अणुओं-परमाणुओं-कोशिकाओं का मरण व नयी कोशिकाओं का निर्माण सतत चलता रहता है, हम बचपन-किशोरवस्था-जवानी-बुढ़ापे से मरण की ओर हमेशा अग्रसर होते रहते हैं। वहीं नारी युवती से मां बनने का एक पीड़ादायी सफर-परिवर्तन बच्चे के जन्म के समय सहन करती है, तभी वह मां बनने व भावी संतति को जन्म देने वाली जननि बनने की महान पदवीं प्राप्त करती है। क्या वह इस मृत्युतुल्य पीड़ा को सहने से इंकार करती है? यदि नही तो फिर परिवर्तन से पीड़ा क्यों?
वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया है कि निर्जीव चीजें पहाड़, मिट्टी आदि में भी लगातार परिवर्तन हो रहे हेैं । एवरेस्ट पर्वत भी अपने आकार में बढ़ रहा है, वो बात अलग है कि ये परिवर्तन काफी समय बाद दृष्टिगोचर होते हैं।
इस प्रकार हम देखते हैं कि परिवर्तन सजीव ही नहीं निर्जीव वस्तुओं में भी आते हैं। परिवर्तन भगवान महाकाल का एक आवश्यक नियम है। ऐसे ही नियम हमें अपने दैनिक जीवन में दृष्टिगोचर होते हैं, जैसे कभी हम स्वस्थ होते हैं कभी अस्वस्थ, कभी नौकरी में प्रमोशन पाते हेैं कभी हमारा डिमोशन भी हो जाता है, कभी हमारा काम-धंधा ऊंचाईयों को छू रहा होता है कभी हमारा काम-धंधा फेल हो जाता है, कभी राजा तो कभी रंक हो जाते हैं, कभी हमें असीम सुख की प्राप्ति होती है कभी दुःख भी मिलता है, कभी पत्नि-बच्चों से अच्छी बाॅडिंग हो जाती है कभी लड़ाई भी हो जाती है, ऐसे ही अनेक परिवर्तन हमें दैनिक जीवन में देखने को मिलते हैं परन्तु ये स्थायी नहीं होते, बल्कि अस्थायी होते हैं, जैसे अंधेरी और कष्टदायी रात के बाद दिन की आनन्ददायक किरणें निकलना भी अवश्यसंभावी है।
पूज्य माताजी भगवती देवी का कथन है कि ‘‘हमेशा सकारात्मक परिस्थितियों की कल्पना मत करो, क्योंकि ये संसार केवल तुम्हारे लिए ही नहीं बना है।’’ अतः परिवर्तन रूपी विपरीत परिस्थितियों के लिए भी तैयार रहना चाहिए। जिस प्रकार अच्छी आमदनी के समय, धन जोड़ कर बुरे समय के लिए रखा जाता है। उसी प्रकार अच्छे समय में भी बुरे समय या विपरीत परिस्थितियों के लिए भी अपने आप को मानसिक रूप से तैयार रखना चाहिए, ताकि ऐसी परिस्थितियों का सामना साहस के साथ किया जा सकें। साथ ही जीवन में परिवर्तन को पीड़ा दायक न समझ कर उसे जीवन का आवश्यक नियम व सफलता का राजमार्ग समझा जा सकें और उसका हम खुले दिल से स्वागत करें। इस प्रकार हम कह सकते हैं "परिवर्तन की पीड़ा" सहकर ही "सफलता का आनन्द" मिलता हैं! धन्यवाद।
आलेख पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतिक्षा में..............!
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अंत में एक शेर के साथ अपनी बात समाप्त करता हूँ-
मिटा दे अपनी हस्ती को अगर कुछ मर्तबा1चाहे,
कि दाना ख़ाक2 में मिल कर गुल-ओ-गुलज़ार3 होता है।
१-ऊँचा पद २-मिट्टी ३-फूलों-फलों से कि दाना ख़ाक2 में मिल कर गुल-ओ-गुलज़ार3 होता है।
प्रस्तुति: संजय कुमार गर्ग, लेखक, वास्तुविद्, एस्ट्रोलाॅजर 8791820546 Whats-app
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