जैसी दृष्टि वैसी ही सृष्टि होती है!! (विचारोत्तेजक लेख)

जैसी दृष्टि वैसी ही सृष्टि होती है!! (विचारोत्तेजक आलेख)
यूएसए में एक गौरी मेम ने एक काले बच्चे को जन्म दिया, बच्चे के रंग को देखकर सभी अचंभित थे, गौरी मेम के हसबैण्ड घर पर बहुत कम रहते थे, वो अपने बिजनेस के कारण टूर पर ज्यादा रहते थे। अब जब गौरे अंग्रेज के घर काले बच्चे का जन्म होता है तो वह अपनी पत्नि के चरित्र पर शक करता है, और कोर्ट में तलाक की अर्जी लगा देता है। उसकी पत्नि ने कोर्ट में तलाक देने से साफ इंकार कर दिया और यह शपथपत्र लगाया कि यह बच्चा उसका और उसके पति का ही है। न्यायाधीश ने यह केस एक साइक्लाॅजिस्ट व परामनोवैज्ञानिक को ट्रांसफर कर दिया। हमारे देश में जो लोग झाड़-फूंक करने वाले बाबा जी कहलाते हैं वहीं विदेशों में उनका नाम परामनोवैज्ञानिक होता है, हमारे बाबाजियों और वहां के परामनोवैज्ञानिकों में बस ये अन्तर होता है, वहां के ये व्यक्ति पढ़े-लिखे, डिग्रीधारी और अध्यात्मिक शक्तियों के जानकार होते हैं। अब साइक्लाॅजिस्ट व परामनोवैज्ञानिक द्वारा गौरी मेम के घर की निरीक्षण किया गया, तो उन्होंने पाया कि स्त्री अपनी प्रेगनेन्सी की अवस्था में जिस कमरे में अपना अधिकतर समय बिताती थी उसमें एक काले हब्शी बच्चे की तस्वीर लगी थी और उस काले बच्चे की शक्ल हुबहू उस बच्चे से मिलती थी जिस बच्चे को उस गौरी मेम ने जन्म दिया था। मनोवैज्ञानिकों ने यह सिद्ध किया कि क्योंकि प्रेगनेन्सी की अवस्था में अपना अधिकतर समय उस कमरे में बिताने के कारण उस मेम की दृष्टि बार-बार उस काले हब्शी बच्चे पर पड़ती थी, इसी कारण बार-बार पड़ने वाली दृष्टि ने अपने बच्चे के रंग-रूप की सृष्टि ही परिवर्तित कर दी और उसने एक काले बच्चे का जन्म दिया।
 
प्रबुद्ध पाठकों! ये होती है, दृष्टि की शक्ति, हमारे नजरें जैसी चीजों को देखकर जैसी भावना बना लेती हैं उसी के अनुरूप वे अपनी मानसिक व शारीरिक सृष्टि का निर्माण करने लगती हैं।
 
पूर्ण चन्द्रमा को देखकर अलग-अलग प्रकृति के व्यक्ति अपनी अलग-अलग सृष्टि का निर्माण करते हैं-एक कवि की दृष्टि पूर्ण चन्द्रमा पर पड़ती है तो वो ‘‘चारू चन्द्र की चंचल किरणें........’’ जैसी कालजयी रचना की सृष्टि करता है, वहीं एक प्रेमी शायर की दृष्टि पड़ती हैं तो वह "कल चौदहवीं की रात थीं शब भर चर्चा तेरा..." एक खूबसूरत गजल की सृष्टि कर डालता है, वहीं चन्द्रायण व्रत रखने वाले साधकों को शायद यह एक रोटी सी नजर आता है क्योंकि आज वे पूर्ण भोजन ग्रहण करेंगे, वहीं वैज्ञानिक की दृष्टि में ये स्थिति चन्द्रमा का सूर्य के बिल्कुल सामने आने का परिणाम मात्र है। तो हमारी मानसिक स्थिति की दृष्टि ही एक अलग सृष्टि का निर्माण करती है।
 
प्रिय पाठकों! कदाचित् आप जानते होंगे कि स्वाति नक्षत्र में सींप के मुंह में जो बारिश की बूंद गिरती है वहीं बूंद उसमें मोती का निर्माण करती है। उसी नक्षत्र की वहीं बूंद यदि सांप के मुंह में चली जाये तो वहीं बूंद सांप में जहर का निर्माण करेगी और यदि अन्न के दाने पर गिर जाये तो वहीं नक्षत्र वहीं बूंद अन्न का निर्माण करेगी, अर्थात हमारी जैसी मानसिक दृष्टि होती है उसी के अनुसार हम अपनी सृष्टि की रचना करने लगते हैं। यह दृष्टि न केवल हमारी मानसिक स्थिति का निर्माण करती है बल्कि हमारे शरीर के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। एक अन्य उदाहरण देकर मैं आपको अपनी बात समझाने का प्रयास करता हूं।
 
आपने जिम या व्यायामशालाओं में बहुत सारे दर्पण लगे हुए देखें होंगे, क्या आपने कभी सोचा है कि जिम में इतने सारे दर्पणों का क्या काम है?, क्या व्यायाम करने वाले इन्हें देखकर अपने बाल, कपड़ों को संभालते या ठीक करते रहते हैं?? नहीं!, नहीं! बिल्कुल नहीं। इन्हें लगाने का असली उद्देश्य है कि जिम में एक्सरसाइज करने वाले, एक्सरसाइज करते समय अपने शरीर पर दृष्टि जमाये रखे, और अपने आप को अपने सुन्दर व बलिष्ठ शरीर बनने का मानसिक सजेशन देते रहे, बार-बार ऐसा करने से, इसका प्रभाव उनके शरीर पर पड़ने लगता है, और इस दृष्टि का परिणाम ये होता है, कि वह अपने एक सुन्दर व बलिष्ठ शरीर की सृष्टि करने में सफल हो जाते हैं। इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि हमारी दृष्टि का पाॅजिटिव या नेगेटिव प्रभाव हमारे शरीर पर पड़ सकता है। एक एस्ट्रोलाॅजर होने के कारण एक उदाहरण मैं ज्योतिष का भी जरूर दूंगा।
 
साथियों!! एक लग्न, एक समय में हजारों-लाखों बच्चों का जन्म होता है, परन्तु उनमें से कुछ सफल व्यवसायी, प्रोफेसर, लेखक या वक्ता आदि बनते हैं, वहीं कुछ गरीबी से लाचार होकर अपनी पूरी जिन्दगी रोते कल्पते बिता देते हैं, वहीं लग्न, वहीं समय, वहीं कुण्डली फिर ऐसा क्यों?? वजह फिर वहीं कि जैसे परिवार के, जैसे माहौल में, जैसी दृष्टि रखकर बच्चे का पालन-पोषण किया जाता है, वहीं दृष्टि बच्चे के अच्छे या बुरे भविष्य की सृष्टि करती है, वहीं दृष्टि बच्चे को राजा या फिर रंक बना देती है। एक ही राशि का होने के बाद जहां "राम" पुरूषोत्तम, पितृ भक्त बनकर भगवान की उपाधि से विभूषित किये गये वहीं परमज्ञानी, परम शिवभक्त होने के बाद भी रावण को "राक्षस" की उपाधि दी गयी।
 
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि हमारी दृष्टि ही सृष्टि का निर्माण करती है, अच्छी दृष्टि से अच्छा और रचनात्मक निर्माण संभव है और वही बुरी दृष्टि से बुरा होना भी संभव है। छोटे बच्चों को माताएं काला टीका लगाती हैं जो उन्हें बुरी नजर या बुरी दृष्टि से बचाता है, वहीं आज भी बड़े-बड़े बिल्डर अपनी बहुमंजिला इमारतों में नजर ना लगने की हांडियां टांगते हैं, जो उनकी बहुमंजिला इमारतों को बुरी नजरों से बचाते हैं। तो इस प्रकार ये बात सिद्ध हो जाती है कि जैसी दृष्टि वैसी ही सृष्टि होती है!! 
 
जलील मानिकपूरी के शेर के साथ अपनी बात समाप्त करता हूं-
 
निगाह बर्क  नहीं  चेहरा  आफ्ताब  नहीं,     बिजली, चन्दा
वो  आदमी है मगर देखने की  ताब नहीं।     शक्ति-आग

धन्यवाद, जय हिन्द! आपके बहुमूल्य कमैंटस की प्रतीक्षा में!!!
प्रस्तुति: संजय कुमार गर्ग, लेखक, वास्तुविद्, एस्ट्रोलाॅजर 8791820546 Whats-app
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