क्यों करें सूर्य की वन्दना
सायरन से मिली है हमें
भोर होने की शुभ सूचना।
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कवि को रोटी न दो पेट भर
वर्ना खाकर वो सो जायेगा
पेट में दर्द पैदा करो
गीत का जन्म हो जाएगा।
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धन के संकेत हैं और हम
मस्ती क्या, मान क्या, मन है क्या
एक वेतन के दिन के सिवा
नौकरी में नयापन है क्या।
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सचाई पर सफेदी पुत रही है
सुहागा कोयलों पर चढ़ गया है
न तुम पीछे पड़ों इंसानियत के
जमाना बहुत आगे बढ़ गया है।
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दिन में पत्नी के ताने सुने
रात मच्छर के ताने सुनूं
एक ही कान से किस तरह
गालियां और गाने सुनूं।
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लिखा ‘टू लेट’ जिन्होने जिन्दगी भर
उन्हें गीता पढ़ाकर क्या करोगे
जिन्होंने बैंक में दिल रख दिये हैं
उन्हें कविता सुनाकर क्या करोगे।
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अगर मैं ‘शब्द’ के पीछे न पड़ता
तो बंगला आज आलीशान होता
किताबों से निकलता ‘अर्थ’ कोई
तो मैं सबसे बड़ा धनवान होता।
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हृदय का आईना किसको दिखाऊं
यहां सब शक्ल से पहचानते हैं
करूं निर्यात अपनी आत्मा का
विदेशी मोल इसका जानते हैं।
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सजावट को जरा-सी सादगी दो
कहीं दुकान मानव हो न जाये
न मन की खाट पर मखमल बिछाओ
कहीं इन्सान भीतर सो न जाये।
-ओमप्रकाश आदित्य
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