(1)
कहीं कारोबार सी दोपहर, कहीं बदमिजाज सी शाम है
कहां अब दुआओं की बरकतें, वो नसीहतें, वो हिदायतें
ये जरूरतों का खुलूस है, ये मतालबों का सलाम है
यूूं ही रोज मिलने की आरजू बड़ी रख रखाव की गुफ्तुगू
ये शराफतें नहीं बे गरज उसे आप से कोई काम है।
वो दिलों में आग लगायेगा मैं दिलों की आग बुझाउंगा
उसे अपने काम से काम है, मुझे अपने काम से काम है
न उदास हो, न मलाल कर, किसी बात का न ख्याल कर
कई साल बाद मिले हैं हम, तिरे नाम आज की शाम है
कोई नगमा धूप के गांव सा, कोई नगमा शाम की छांव सा
जरा इन परिन्दों से पूछना ये कलाम किस का कलाम है।
(2)
खुशबू की तरह आया वो तेज हवाओं में
मांगा था जिसे हमने दिन रात दुआओं में
तुम छत पे नहीं आए मैं घर से नहीं निकला
ये चांद बहुत भटका सावन की घटाओं में
इस शहर में इक लड़की बिल्कुल है गजल जैसी
बिजली सी घटाओं में खुशबू सी हवाओं में
मौसम का इशारा है खुश रहने दो बच्चों को
मासूम मुहब्बत है फूलों की खताओं में
भगवान ही भेजेंगे चावल से भरी थाली
मजलूम परिन्दों की मासूम सभाओं में
दादा बड़े भोले थे सबसे यही कहते थे
कुछ जहर भी होता है अंग्रेजी दवाओं में।
खुशबू की तरह आया वो तेज हवाओं में
मांगा था जिसे हमने दिन रात दुआओं में
तुम छत पे नहीं आए मैं घर से नहीं निकला
ये चांद बहुत भटका सावन की घटाओं में
इस शहर में इक लड़की बिल्कुल है गजल जैसी
बिजली सी घटाओं में खुशबू सी हवाओं में
मौसम का इशारा है खुश रहने दो बच्चों को
मासूम मुहब्बत है फूलों की खताओं में
भगवान ही भेजेंगे चावल से भरी थाली
मजलूम परिन्दों की मासूम सभाओं में
दादा बड़े भोले थे सबसे यही कहते थे
कुछ जहर भी होता है अंग्रेजी दवाओं में।
(3)
अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया
जिसको गले लगा लिया वो दूर हो गया
कागज में दब के मर गये कीड़े किताब के
दीवाना बे पढ़े लिखे मशहूर हो गया
महलों में हमने कितने सितारे सजा दिये
लेकिन जमीं से चांद बहुत दूर हो गया
तनहाइयों ने तोड़ दी हम दोनों की अना अहं
आईना बात करने पे मजबूर हो गया
सुब्हे विसाल पूछ रही है अजब सवाल
वो पास आ गया कि बहुत दूर हो गया
कुछ फल जरूर आएंगे रोटी के पेड़ पर
जिस दिन मेरा मतालबा मंजूर हो गया। मांग
(4)
उसे याद करके न दिल दुखा जो गुजर गया सो गुजर गया
न गिला किया, न खफा हुए, यूं ही रास्ते में जुदा हुए
न तू बे वफा, न मैं बे वफा, जो गुजर गया सो गुजर गया
वो गजल की कोई किताब था, वो फूलों में एक गुलाब था
जरा देर का कोई ख्वाब था, जो गुजर गया सो गुजर गया
मुझे पतझड़ों की कहानियां न सुना सुना के उदास कर
तू खिजां का फूल है मुस्कुरा, जो गुजर गया सो गुजर गया
वो उदास धूप समेट कर कहीं वादियों में उतर चुका
उसे अब न दे मिरे दिल सदा, जो गुजर गया सो गुजर गया
ये सफर भी कितना तवील है, यहां वक्त कितना कलील है लंबा, छोटा
कहां लौट कर कोई आयेगा, जो गुजर गया सो गुजर गया।
(5)
वो प्यासे झोंके बहोत प्यासे लौट जाते हैं
जो दूर-दूर से बादल उड़ा के लाते हैं
कोई लिबास नहीं दिल की बे लिबासी का
अगरचे रोज नहीं चादरें चढ़ाते हैं
सितारे खोए हुए बच्चे हैं जिन्हें अक्सर
वो साथ खेले हुए दोस्त याद आते हैं
कसीदा हुस्न का और हुस्न को सुनाओगे
बताओ फूल को खुशबू कहीं सुंघाते हैं
सितारा बन के भटकते हैं सारी सारी रात
जो वादा करके वफा करना भूल जाते हैं
गुलाब सा वो बदन क्या हवाए दर्द में तो
घने दरख्तों के जंगल भी सूख जाते हैं
हमारे शेर गुनाहे जमीं का वो नगमा हैं
जिसे फलक के फरिश्ते भी गुनगुनाते हैं।
सितारे खोए हुए बच्चे हैं जिन्हें अक्सर
वो साथ खेले हुए दोस्त याद आते हैं
कसीदा हुस्न का और हुस्न को सुनाओगे
बताओ फूल को खुशबू कहीं सुंघाते हैं
सितारा बन के भटकते हैं सारी सारी रात
जो वादा करके वफा करना भूल जाते हैं
गुलाब सा वो बदन क्या हवाए दर्द में तो
घने दरख्तों के जंगल भी सूख जाते हैं
हमारे शेर गुनाहे जमीं का वो नगमा हैं
जिसे फलक के फरिश्ते भी गुनगुनाते हैं।
संकलन-संजय कुमार गर्ग sanjay.garg2008@gmail.com
मुक्तक/शेरों-शायरी के और संग्रह
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