जोश मलीहाबादी के कुछ प्रसिद्ध शेर!

जोश मलीहाबादी के कुछ प्रसिद्ध शेर!

क्या शेख की खुश्क  जिन्दगानी गुजरी
बेचारे  की  एक  शब  न  सुहानी गुजरी
दोजख  के  तखय्युल  में  बुढ़ापा बीता 
जन्नत  की  दुआओं में जवानी गुजरी।
नरक,  कल्पना

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मेरी  हालत  देखिये  और  उनकी सूरत देखिये
फिर निगाए-ए-गौर से कानून-ए-कुदरत देखिए
 आप  इक  जलवा  सरासर, मैं  सरापा इक नजर
अपनी  हालत  देखिए  और मेरी जरूरत देखिए
मुस्कुराकर  इस  तरह  आया  न कीजे  सामने
किस  कदर  कमजोर  हूं  मैं  मेरी  सूरत देखिए
थी खता  उन   की  मगर जब आ गए वो सामने
झुक गयी मेरी ही आंखें रस्म-ए-उल्फत देखिए।
सम्पूर्ण  शरीर,   प्यार की रस्म

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जन्नत   के  मजों  पे जान देने वालों
गन्दे   पानी   में   नाव   खेने   वालो
हर   खैर  पे  चाहते   हो  सत्तर  हूरें 
ऐ  अपने  खुदा   से  सूद  लेने  वालों।
 नेकी

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अल्फाज हैं नागन सी जवानी के डसे
अनफास  महकते  हुए होंठों  में बसे
यूं  दिल  को  जगा रहा है तेरा लहजा
जिस तरह सितार के कोई तार कसे।
सांस

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जो चीज  इकहरी थी वो दोहरी निकली
सुलझी हुई जो बात थी उलझी निकली
सीपी  तोड़ी  तो  उससे  मोती  निकला
मोती  तोड़ा  तो  उसमें  सीपी  निकली

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कल  मोतियों  को  रोल  दिया  साकी  ने
सोने   में   मुझे   तोल   दिया   साकी  ने
ये सुनके  कि खुलता नहीं मकसूदे-हयात
मैखाने  का  दर  खोल  दिया  साकी   ने।
जीवन का उद्देश्य

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दिल की चोटों ने कभी चैन से रहने न दिया
जब  चली  सर्द  हवा  मैं ने तुझे याद किया
इसका  रोना  नहीं  क्यों  हमें  बर्बाद किया
गम  तो  ये  है  बहुत  देर  से बर्बाद किया।


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इस  कदर  डूबा हुआ दिल दर्द की लज्जत में है
तेरा आशिक अंजुमन ही क्यूं न हो खल्वत में है
जज्ब  कर  लेना  तजल्ली  रूह  की आदत में है
हुस्न को महफूज रखना इश्क की फितरत में है
महव  हो  जाता हूं अक्सर मैं कि दुश्मन हूं तेरा
दिलकशी किस दर्जा ऐ दुनिया तेरी सूरत में है।
तन्हाई, रोशनी, खो जाना

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गर्दन     में    हैं    बाहें,    गर्दिश    में     हैं    पैमाने
क्या  दीन   है,  क्या  दुनिया,  शायर  की बला जाने
हम इश्क से क्या वाकिफ, वाकिफ हैं तो सिर्फ इतना
आगाज    हलाकत    है,    अंजाम     खुदा      जाने
ऐ   ‘जोश’   उलझता   है  क्यों शैख-ए-सुबुक-सर से
वो  इश्क  को   क्या  समझे, वो हुस्न को क्या जाने।
मौत, धर्मगुरू

संकलन-अनुवादक : संजय कुमार गर्ग sanjay.garg2008@gmail.com
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