वेदों में आता है कि एक जिज्ञासु व्यक्ति ऋषि से पूछता है कि ‘‘कस्मिन्तु भगवो विज्ञाते सर्वमिदं विज्ञतो भवति’’? अर्थात ऐसी कौन सी वस्तु है, जिसका ज्ञान होने पर सब कुछ ज्ञात हो जाता है। ऋषि उत्तर देते हैं कि ‘‘यह प्राण तत्व ही है जिसे जान लेने के बाद कुछ जानना अवशेष नहीं रहता।’’ और प्राण तत्व को जानने का एक ही माध्यम है कि हम प्राणायाम करें। वो भी सही शास्त्रोक्त व वैज्ञानिक विधि से।
प्रिय पाठकों! प्राणायाम दो शब्दों से मिलकर बना है पहला प्राण और दूसरा आयाम। प्राण का अर्थ है जीवन तत्व और आयाम का अर्थ है विस्तार। अतः प्राणों को विस्तार देने वाली प्रक्रिया को प्राणायाम कहा जाता है। वायु जिसके बिना हम जीवित नहीं रह सकते उसे प्राण भी कह सकते हैं, क्योंकि हम अन्न-जलादि के बिना कुछ समय जीवित रह सकते हैं, परन्तु वायु या सांस के बिना हमारे जीवन का अंत हो जाता है। अतः वायु-सांस को प्राण कहा जाता है।
पूज्य गुरूदेव श्रीराम शर्मा आचाार्य का कहना है कि ‘‘यदि कोई व्यक्ति सम्पूर्ण प्रकृति के तत्वों को जानने का प्रयास करें तो उसे अनन्त समय लग सकता है। इसी कारण श्रुति भी कहती है कि ‘‘प्राण तत्व को समझने उस पर नियंत्रण प्राप्त करने से प्रकृति के समस्त रहस्यों को जाना-अनुभव किया जा सकता है।’’ आचार्य वर आगे लिखते हैं कि ‘‘श्वांस-प्रश्वास क्रिया का प्रभाव तो फेफड़ों तक अधिक से अधिक भौतिक शरीर के बलवर्धन तक सीमित हो सकता है। परन्तु प्राणायाम से जो संकल्प शक्ति की अभिवृद्धि होती है वह मनुष्य को स्थूल ही नहीं सूक्ष्म कार्य-कलेवर को भी समर्थ बनाती है, उसे संघर्षों से जूझने योग्य सामर्थ्य देती है।’’
साथियों! ये बातें सिद्ध करती हैं कि प्राण तत्व को जानना कितना महत्वपूर्ण है, इसे जानने के एक मात्र साधन प्राणायाम है। अतः हमें प्राणायाम अवश्य करना चाहिए, वो भी शास्त्रों में बतायी गयी वैज्ञानिक विधि के अनुसार ही किया जाना चाहिए। नेट पर अधकचरा ज्ञान भरा पड़ा है उसे देखकर कोई योग-प्राणायाम करने की शीघ्रता न करें कहा गया है ‘‘देखा देखी साधै जोग छीजैं काया बाढ़ै रोग।‘‘ अब मैं आपको प्राणायाम की शास्त्रोक्त व वैज्ञानिक विधि के बारे में बता रहा हूं।
प्राणायाम करने की सही व वैज्ञानिक विधि!
प्राणायाम करने के लिए सबसे पहले किसी आसन पर सीधे बैठ जाये, आप पद्मासन, सिद्धासन या सुखासन किसी में भी बैठ सकते हैं, आंखे बन्द करें और अपनी सांसों पर ध्यान केंद्रित करें। उसके बाद प्राणायाम करना प्रारम्भ करें। ध्यान रखें सांस लेने की क्रिया के चार भाग हैं-पूरक-सांस अंदर लेना, कुम्भक-श्वांस को अंदर रोकना, रेचक-श्वास को बाहर निकालना, बाह्य कुंभक-सांस को बाहर रोकना अर्थात श्वास को बाहर निकालने के बाद थोड़ी देर रोके रखना। पाठकजन! ये ध्यान रखें यदि आप केवल शारीरिक क्षमता व रोग निवारण के लिए प्राणायाम कर रहे हैं तो बाह्य कुंभक की क्रिया को छोड़ा जा सकता है।
बाह्य कुंभक की क्रिया प्राण प्रयोग के आध्यात्मिक प्रायोजनों के लिए किये जाने वाले प्राणायामों के लिए एक आवश्यक क्रिया है, चाहे यह क्रिया कुछ सेकेण्ड की ही क्यों ना हों।
यदि आप केवल रोग निवारण व अपनी शारीरिक क्षमता को बढ़ाने के लिए प्राणायाम कर रहे हैं तो बाह्य कुंभक की प्रक्रिया को छोड़ सकते हैं और रेचक (सांस निकालने की क्रिया) के तुरन्त बाद दूसरा प्राणायाम प्रारम्भ कर सकते हैं। परन्तु इसके लिए भी ये ध्यान रखें कि पूरक-कुंभक-रेचक की 1ः 2ः 1 की आवृत्ति हो अर्थात माना आपने 3 सेकेण्ड तक सांस को खींचा है तो उसे 6 सेकेण्ड तक अंदर रोके रखना है और 3 सेकेण्ड में धीरे-धीरे बाहर निकालना है। अर्थात पूरक से दोगुना कुंभक और पूरक के बराबर रेचक होना चाहिए। प्राणायाम की ये एक सही और वैज्ञानिक विधि है। इस प्रक्रिया से प्राणायाम करने से सबसे अधिक लाभ मिलता है और कुछ ही दिनों में आपको इसका प्रभाव, अपने आप पर दृष्टिगोचर होने लगता है। अंत में अपनी लिखी हुई दो लाइनों के साथ अपनी बात को विराम देता हूं-
ना रहो सौ साल की आसों में,
सांसे बचाओ, जिन्दगी बटी है सांसों में
कोई जिज्ञासा हो तो कमैंटस करें, अगले आलेख तक के लिए मुझे आज्ञा दीजिए! नमस्कार जयहिन्द।
प्रस्तुति: संजय कुमार गर्ग, वास्तुविद्, एस्ट्रोलाॅजर 8791820546 Whats-app
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