हमारे पड़ोस में रहने वाले गुप्ता जी अपनी गाड़ी से कहीं जा रहे थे, फैमिली के साथ कहीं पिकनिक का कार्यक्रम था, वापस आये तो 2000 हजार का ऑनलाइन चालान आ गया। उसे देखकर गुप्ता जी बहुत बड़बड़ा रहे थे, ये क्या लूटमारी चल रही है? लोकल में भी सीट बैल्ट ना लगाने पर चालान काट दिया, ये तो अंधी कट रही है? आदि आदि बातें कहते हुए बड़बड़ा रहे थे। क्या उनका चालान गलत काटा गया? क्या यह चालान हमारे फायदे के लिए नहीं है??
इसी प्रकार की दूसरी घटना शर्मा जी के नाबालिग पुत्र के साथ घटी, अपने पिता की बुलैट लेकर स्कूल गया था, कि आज अपने साथियों पर टशन दिखायेगा, दिखाया भी था?... परन्तु स्कूल से वापस आते समय पता नहीं कहां से ट्रैफ़िक वालों ने उस बेचारे का फोटो खींच लिया, आ गया शर्मा जी के फोन पर 5000 हजार का इनाम...? साॅरी....चालान? शर्मा जी उछले-उछले बहुत देर तक पूरे मौहल्ले में घूमे...., जी भर का सरकार व पुलिस का कोसा.....। क्या ये गलत हुआ? कदाचित् ऐसा नहीं होना चाहिए था?? अरे भाई हम गलती करेंगे तो भुगतेंगे भी हम ही... पड़ोसी तो नहीं भुगतेंगे?
एक लड़का शराब पीता था, सिगरेट पिता था, उसके पिता को पता चला, पहले तो उसके पिता ने उसे बैठा कर अच्छी प्रकार समझाया, परन्तु वह नहीं माना, एक दिन पिता ने उसे पकड़कर अच्छी प्रकार से धो..? दिया। अब उस पुत्र के लिए उसके पिता गलत थे? जिन्होंने उसे नशे की रंगीन दुनिया में जाने से रोका??
सरकार या पिता ही नहीं, हमें तो गलतियां करने पर हमारा शरीर भी हमें बीमारी रूपी दण्ड देता है, बताइये.... क्या नहीं देता....?? ज्यादा खाने पर पेट खराब, मुंह में छाले, एसीडिटी, मोटापा आदि आदि न जाने क्या क्या हो जाता है। ज्यादा मीठा खायेंगे, परन्तु योगा-व्यायाम कुछ नहीं करेंगे तो शरीर भी हमें डायबिटीज रूपी दण्ड भी दे डालता है। इसी प्रकार हमारे गलत खान-पान से होने वाली अनेकों प्रकार की बीमारियां शरीर हमें दण्ड के रूप में ही तो देता है। इन बीमारियों के होने का कसूरवाद भी हम किसी और को ही ठहराने का प्रयास करते हैं?
हमने पृथ्वी का दोहन करके डाल दिया, पानी को बर्बाद करने लगे, पेड़ों को काट दिया, इन गलतियों के कारण तो प्रकृति भी हमें बाढ़, भूकम्प, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, महामारी आदि न जाने किस-किस तरह से दंडित ही तो कर रही है। परन्तु हम इसमें भी अपनी गलती नहीं मानते, उल्टे प्रकृति को ही दोषी मानने लगते हैं।
हम अब दूसरे पहलू की बात करते हैं, कि ना तो सरकार, ना ही पिता, ना शरीर और ना ही प्रकृति आपको दंडित करेगी तो फिर क्या होगा? कभी आपने विचार किया है?
गुप्ता जी आज तो लोकल में बिना सीट बैल्ट के ड्राइव कर रहे थे, यदि उनका चालान न काटा जाता तो वे कल लांग ड्राइव पर भी सीट बैल्ट लगाना भूल जाते और ईश्वर न करें कोई हादसा हो जाता तो फिर क्या होता?? हादसे-दुर्घटनायें बता कर नहीं आते, जरा सी गलती की सजा पूरे परिवार को भुगतनी पड़ती? परन्तु अब गुप्ता जी चालान के भय से, लांग ड्राइव की बात छोड़ो लोकल में भी बिना सीट बैल्ट के नहीं निकलेंगे।
शर्मा जी का एकलौता बेटा बिना हेल्मेट, बिना लाइसेन्स के बुलेट दौड़ा रहा था, यदि उसका चालान न किया जाता और उनका लड़का बिना डर भय के बुलैट दौड़ाता रहता और किसी दिन कोई हादसा हो जाता, तो शर्मा जी का एकमात्र सहारा भी छिन जाता, और उन्हें जिन्दगी भर का दर्द दे जाता? परन्तु अब दोबारा चालान कटने के भय से शर्मा जी उसे बालिग होने तक बुलैट को हाथ भी नहीं लगाने देंगे?
यदि वह शराब-सिगरेट पीने वाले लड़का पिता के दण्ड के भय से शराब पीना नहीं छोड़ता तो आज वह शराबी बनकर इधर-उधर गिरता फिरता, और एक दिन बड़ी बीमारी का शिकार भी बन सकता था? जैसा हम अक्सर अपने आसपास शराबियों का हाल देखते ही होंगे?
इसी प्रकार यदि हमें प्रकृति के दण्ड का भय नहीं होता तो हम सारे प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर लेते और इसके बाद हमारे भूखे-प्यासे मरने की नौबत आ जाती।
इस प्रकार हम देखते हैं कि हमें अपनी जिन्दगी, अपने शरीर व प्रकृति की रक्षा के लिए अनुशासित होना अति आवश्यक है, अनुशासित दो प्रकार से हुआ जा सकता है पहला या तो हम स्वयं अनुशासित हों या फिर भय से अनुशासित हों। यदि हम स्वानुशासित होते तो सरकारी-सामाजिक-शारीरिक व प्राकृतिक नियमों को तोड़ते ही नहीं और हमें दण्ड ही नहीं मिलता? हम केवल दण्ड के भय से ही अनुशासित होना जानते हैं, और होते भी हैं। अब गुप्ता जी व शर्मा जी में सरकारी दण्ड का भय है अब वो गलती नहीं करते, लड़के में पिता का भय है अब वह शराब का सेवन नहीं करता, अब हम ज्यादा नहीं खाते, क्योंकि हमें बीमारी का भय है, अब हम वृक्षारोपण कर रहे हैं क्योंकि हमें प्रकृति के दण्ड का भय है और इसी प्रकार हठी समुद्र ने श्रीराम को समुद्र पार करके का रास्ता बताया क्योंकि उसे श्रीराम के क्रोध का भय था।
अतः तुलसीदास जी ने उचित ही कहा है कि भय बिनु होय न प्रीत....!
बिनय न मानत जलधि जड़, गए तीनि दिन बीति
बोले राम सकोप तब भय बिन होय न प्रीत।
धन्यवाद, जय हिन्द! आपके बहुमूल्य कमैंटस की प्रतीक्षा में!!!
प्रस्तुति: संजय कुमार गर्ग, लेखक, वास्तुविद्, एस्ट्रोलाॅजर 8791820546 Whats-app
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