धीरे-धीरे रे मना.....!! (विचारोत्तेजक लेख)

धीरे-धीरे रे मना.....!! (विचारोत्तेजक लेख)

रामकिशन ने एक नयी दुकान खोली थी, अच्छी साज-सज्जा, काफी सामान रखने के बाद उसने दुकान का भव्य उद्घाटन किया, आसपास के दुकानदारों को भी बुलाया चाय-नाश्ता कराया। चूंकि नयी दुकान थी ग्राहक एकदम तो आते नहीं हैं, आते आते ही आते हैं, दो महीने में ही उसकी हिम्मत जवाब देने लगी, वह कम बदलने व स्थान बदलने की सोचने लगा, अनुभवी व्यक्तियों ने उसे अभी और इंतजार करने की सलाह दी। परन्तु रामकिशन धैर्य न रख सका और कुछ महीने के बाद ही उसने लाखों रूपये घटाने के बाद वह दुकान बन्द कर दी। और अब वह एक नये स्थान व नये काम की तलाश कर रहा है..., वह सही समय का इंतजार धैर्य रखकर नहीं कर पाया, समय से पहले किसी को मिलता कहां हैं भाई??

इसी प्रकार रोहित ने बड़े जोश के साथ जिम ज्वाइन किया, कि मैं अपनी अच्छी पर्सनल्टी बनाउंगा, सभी लोगों मेरी बाॅडी की प्रशंसा करेंगे। परन्तु एक महीने में ही उसका जोश ठंडा पड़ गया, उसका धैर्य जवाब दे गया। जबकि वह चाहता था कि उसकी बाॅडी एक बाॅडीबिल्डर की तरह दिखे। जब मैंने उससे जिम छोड़ने का कारण पूछा तो उसका उत्तर था-भाईया एक महीने में बाॅडी कुछ भी नहीं बनीं...? मेहनत बहुत ज्यादा है...? मैं तो थक जाता हूं..?? आदि आदि उसके अनेकों एक्सक्यूज??? क्या एक महीने में, एक-दो घंटे एक्सरसाइज करके उसका शरीर किसी पहलवान की तरह बन सकता था? हां!! बन भी सकता था जब कि वह नियमित पांच-छह महीने एक्सरसाइज करता, परन्तु धैर्य कहां हैं आजकल हममें???

एक दूसरा उदाहरण देखिए, मोहित प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहा था, बड़े जोश और संकल्प के साथ उसने प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी प्रारम्भ की। वह अपने आप को एक बैंक अधिकारी देखना चाहता था, पहली बार उसने परीक्षा बड़े जोश के साथ दी, उसमें असफल हो गया, दूसरी बार में भी असफल हो गया, अब उसका धैर्य जवाब दे गया, उसने परीक्षा की तैयारी छोड़ दी और अब वह बीएड या एलएलबी करने का विचार कर रहा है। हम चाहते हैं कि हमें पहले प्रयास में ही सफलता मिल जाये.....यदि नहीं मिलती तो निराश और हताश हो जाते हैं?? अरे भाई! "शिशु का पहला रोना सुन कर तो मां भी दूध नहीं पिलाती...वो भी प्रतिक्षा करती है, क्या इसे वास्तव में भूख लग रही है, या वैसे ही रो रहा है?? बिल्कुल ऐसे ही हमारी 'जगतजननी प्रकृति माता' भी हमारी टोह लेती है कि इसे वास्तव में इस चीज की भूख है भी, या नहीं?? और हम एक बार ही रो कर ही चुप हो जाते हैं, क्योंकि वास्तव में हम भूखे होते ही नहीं?? यदि हम वास्तव में भूखे होते तो फिर रोते..... और फिर रोते? यानि फिर प्रयास करते और फिर प्रयास करते...एक के बाद एक..., देखते तो सही, कैसे 'जगतजननी प्रकृति माता' हमारे सारे काम सिद्ध करने के लिए दौड़ी चली आ रही है.....!"

इसी प्रकार हमारे पड़ोस में रहने वाले किशन अंकल जी अपने डाक्टर से भिड़ गये, मेरा बुखार ठीक क्यों नहीं हो रहा है, ये बार-बार क्यों चढ़ जाता है, तुम ठीक से दवाईयां क्यों नहीं दे रहे हों आदि आदि। डाक्टर ने अपने गुस्से पर नियंत्रण रखते हुए कहा, अंकल! एकदम से तुम्हारा बुखार ठीक नहीं होगा, इसे ठीक होने में कम से कम 10 दिन तो लगेंगे ही, आप धैर्य रखिए और साथ ही बीपी की दवाईयां और खाइये, इस उम्र में आपके लिए ज्यादा गुस्सा करना हानिकारक हो सकता है??

प्रिय पाठकों! ऐसे अनेक उदाहरण हमें अपने दैनिक जीवन में देखने को मिलते हैं, हम अपनी जरा सी मेहनत का तुरन्त बड़ा परिणाम चाहते हैं? हम चाहते हैं कि आज बीज बोये और कल से ही फल मिलने प्रारम्भ हो जायें, भला ऐसा होता है क्या??

प्रिय प्रबुद्ध पाठकों! हम सभी जानते हैं आइंसटीन ने बल्ब का अविष्कार किया था, परन्तु उसे अपने इस प्रयोग में दर्जनों बार असफलता मिली थी..परन्तु उसने धैर्य नहीं छोड़ा, और अंत में उसने दुनिया में उजाला लाने वाले बल्ब का अविष्कार किया। इसलिए आइंस्टीन कहा करते थे ‘‘आप कभी फेल नहीं होते, जब तक आप प्रयास करना नहीं छोड़ देते।’’

रामकिशन ने उस क्षेत्र में कोई अच्छी चलती दुकान देख कर वहां पर दुकान खोलने का निर्णय तो ले लिया, क्या उसने पता किया कि वह दुकानदार वहां पर पिछले दस सालों से दुकान कर रहा है.....प्रारम्भ में तो उस दुकानदार ने भी ऐसी ही समस्या फेस की थी जो कि आज रामकिशन ने की थी, परन्तु अंतर केवल इतना है उसने धैर्य नहीं छोड़ा और वह डटा रहा, और अंत में सफल हो गया। आज उसकी दुकान उस एरिया की अच्छी दुकानों में गिनी जाती है। 

इसी प्रकार रोहित जैसे लड़के बाॅडी बिल्डर तो बनना चाहते हैं, परन्तु उन्होंने क्या कभी किसी फेमस बाॅडी बिल्डर की दिनचर्या का अध्ययन किया है, कि वो किस प्रकार, कितनी देर, एक्सरसाइज करते हैं और क्या खाते हैं? प्रिय पाठकों!! बाॅडीबिल्डर पूरे दिन में घंटों एक्सरसाइज करते हैं, कोई भी दिन छोड़े बिना, और अपने एक सही डाइट प्लान पर चलते हैं। साथ ही आप को मैं एक बात और बताना चाहता हूं, आपने बाॅडी बिल्डर का शरीर देखा है कभी उसकी हथेली देखना, वो इतनी ज्यादा एक्सरसाइज करते हैं, कि उनकी हथेली की रेखाएं तक वजन उठाते-उठाते मिट जाती हैं, तब जाकर वो अपना एक सुन्दर दर्शनीय शरीर बना पाते हैं।

इसी प्रकार मोहित जैसे प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले बच्चों से मैं कहना चाहूंगा कि एक प्रतियोगी परीक्षा में हजारों-लाखों विद्यार्थी बैठते हैं, सफल केवल सैंकड़ों या हजारों में ही होते हैं, वहीं सफल होते हैं जो सही दिशा में, पूरी मेहनत, लगन और धैर्य के साथ, तैयारी करते हैं, इनमें से अनेकों, अनेकों बार असफल भी हुये होते हैं परन्तु जो अपना धैर्य नहीं छोड़ते, और मेहनत, लगन से लगे रहते हैं, अन्त में विजयीश्री उनका ही वरण करती है। इसलिए जयशंकर प्रसाद ने लिखा है-

धैर्य  न टूटे  चाहे चोट पड़े सौ घन की
यही दशा होनी चाहिए, निज मन की।


प्रिय पाठकों! किसी भी कार्य में सफल होने के लिए आवश्यक है कि सबसे पहले आत्मविश्लेषण करें कि क्या हम इस कार्य को करने लायक हैं, इस काम को करने की क्षमताएं व गुण हममें हैं भी या नहीं? यदि आप सोचते हैं कि हां! हम इस कार्य को करने लायक हैं और हमारे अंदर इस काम को करने की क्षमता और गुण हैं! तो फिर उस क्षेत्र के सफल व्यक्तियों के बारे में अध्ययन करें कि वे किस प्रकार सफल हुए हैं? और कितने समय में सफल हुए हैं? क्या उतना समय और धैर्य हमारे अंदर है? यदि आपमें हैं तो तभी उस कार्य में हाथ डाले। अन्यथा उस कार्य से दूर ही रहें! 

साथ ही यदि आज बीज बोये, कल फल की कल्पना न करें, धैर्य से उसके पेड़ बनने का इंतजार करें, समय आपके या हमारे अनुसार नहीं चलेगा, इसीलिए कबीदास जी ने कहा है- 

धीरे-धीरे  रे  मना  धीरे  सब  कुछ  होय,
माली सींचे सौ घड़ा ऋतु आये फल होय।

धन्यवाद, जय हिन्द! आपके बहुमूल्य कमैंटस की प्रतीक्षा में!!!

प्रस्तुति: संजय कुमार गर्ग, लेखक, वास्तुविद्, एस्ट्रोलाॅजर 8791820546 Whats-app
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