'डर' से डरना क्या.....? (विचारोत्तेजक लेख)

'डर' से डरना क्या.....? (विचारोत्तेजक लेख)

मेरे पड़ोस में रहने वाले भईयां को रास्ते में मैंने स्कूटी पर बैठा लिया, क्योंकि मैं भी घर जा रहा था, वो स्कूटी पर बैठ तो गये, उन्होंने स्कूटी को दोनों साइड से कस कर पकड़ लिया, कदाचित् स्कूटी पर उन्हें डर लग रहा था, जबकि मैं सामान्य स्पीड से स्कूटी चला रहा था, बराबर में यदि कोई वाहन आ जाता तो उस वाहन से बचने के लिए वो फोरन अपना वजन दूसरी साइड में डाल देते, मेरी स्कूटी एकदम से डिसबैंलेस होने लगती, या तो उन्हें स्कूटी पर बैठने में डर लगता था या फिर उन्हें  ट्रैफिक से डर लगता था, कदाचित् उन्हे "टैकोफोबिया" था। टैकोफोबिया में सड़क पर चलने वाले वाहनों या तेज गति से चलने वाले वाहनों में बैठने से डर लगता है। यह एक फोबिया है जिसके पीछे कभी दुर्घटना या फिर आनुवंशिक कारण हो सकते हैं। हम में अनेकों को टैकोफोबिया होता है।

इसी प्रकार से एक दिन रोहित रात्रि में अपने पुत्र से बोला, दूसरे कमरे में मेरा लैपटाॅप रखा है जरा उठा लायो? 10 वर्षीय बेटा रात्रि में अपने ही घर में दूसरे कमरे में जाने से डर रहा था, जब रोहित ने उससे दूसरे कमरे में ना जाने का कारण पूछा तो बोला, पापा! वहां भूत हो सकता है, क्योंकि भूत रात में ही आते हैं? इसलिए मुझे वहां जाने से डर लग रहा है, रोहित फिर अपने बेटे को साथ लेकर उस कमरे में गया, ताकि उसका भय दूर कर सके, बेटा डरते-डरते उसके साथ गया, तब रोहित ने उस कमरे से अपना लैपटाॅप उठाया। विशेष रूप से भारतीय बच्चों में भूत-प्रेत का डर आम समस्या है, क्योंकि बचपन से ही हमने उन्हें भूत प्रेतों से डरा-डरा कर बड़ा किया है। दूध पी लो नहीं तो भूत आ जायेगा, सो जाओं नहीं तो भूत आ जायेगा, खाना खा लो नहीं तो भूत बाबा आ जायेगा आदि आदि। बड़े होने तक यहां तक कि जवान होने तक भी उनमें ये मानसिक समस्या बनी रहती है। हम अपने जरा से आराम के लिए अपने बच्चों को एक मानसिक समस्या अनायास ही दे देते हैं?

'डर' से डरना क्या.....? (विचारोत्तेजक लेख)

एक दिन मैं चौराहे पर खड़ा था, मेरी साइड का ट्रैफिक रूका हुआ था, दूसरी साइड का  ट्रैफिक चल रहा था, तभी 12-13 साल के दो बच्चे जो शायद किसी मदरसे के तालिब (विद्यार्थी) थे, साईकिल पर सवार हो के आये और बन्द साइड से रोड पार करने का प्रयास करने लगे, पुलिस वाले ने उन्हें जोर से कहा, वहीं रूकों!! पुलिस वाले की आवाज सुनकर वो इतनी जोर से डरे कि वे अपनी बड़ी सी साईकिल से गिरते-गिरते बचे। जैसे-तैसे करके उन्होंने साईकिल संभाली, और साईकिल को वापस मोड़ कर पुलिस वाले के चेहरे को उल्टे मुड़कर डरावने भाव से देखने लगे, शायद उन्होंने वहीं रूकों!!?? का गलत अर्थ निकाल लिया था, उनको बहुत ज्यादा डरता हुआ देख,  पुलिस वाला भी मजाकिया मूड में आ गया, उसने फिर कहां-क्या हुआ? वहीं रूकों...? कहते हुए उनकी ओर एक कदम बढ़ा...। पुलिस वाले का एक कदम अपनी तरफ आते देख कर वो बच्चे इतना डर गये कि, बिना साईकिल पर बैठे ही पैदल साईकिल समेत बड़ी तेजी से वापस भागे, उनकी लगायी गयी टोपियां भी हवा में उड़ कर जमीन पर गिर गयी...। मेरी साइड की रूकी हुई भीड़ भी इस दृश्य को देख रही थी, उनके भी इस कुछ सैकेण्ड के दृश्य से हंसते-हंसते पेट दुखने लगे। ये सब क्या था? ये पुलिस नाम का फोबिया था, जो उन बच्चों में बचपन से ही बैठा हुआ था, केवल अपने मदरसे तक ही उनकी दुनिया सीमित थी, रोड पर चलने के नियम, सामाजिक नियमों से पूरी तरह अनभिज्ञ थे?

इसी प्रकार बहुत से माता-पिता अपने बच्चों को कड़े अनुशासन में रखते हैं, उनकी नियमित कड़ी दिनचर्या बनायी जाती है, उस पर चलना उनके  लिए अनिवार्य होता है, यदि उस में थोड़ी सी भी लापरवाही की तो फिर उन पर अच्छी मार पड़ती है। साइकालोजिस्ट के अनुसार ऐसे कड़े अनुशासन व दिनचर्या से पलने वाले बच्चे, अच्छे पुत्र तो बन सकते हैं? परन्तु समाज में उनकी स्थिति सरकस में करतब दिखाने वाले शेर-हाथियों जैसी हो जाती है, जो अत्यधिक अनुशासन और डर के कारण अपनी ताकत अपने अस्तित्व को ही भूल जाते हैं और डरपोक व दब्बू बन जाते हैं, यदि वे नौकरी करते हैं तो बाॅस या अपने साथियों से भय खाते हैं, शादी होने के बाद पत्नि से भय खाते हैं, वे किसी से भी बात करते हुए डरते हैं क्योंकि उन्हें मार खाने व डांट खाने का भय उनके मानसिक क्षेत्र में घर कर गया होता है? बचपन से मिली मार-डांट उन्हें समाज में डर कर रहने को मजबूर कर देती है।
 
साइकाॅलोजिस्ट कहते हैं कि अपने बच्चों को अत्यधिक अनुशासन में न रखें, उनको बात-बात पर न डाटें, उनकी बातों को भी सुने, केवल उनके साथी-संगियों का ध्यान रखें कि कहीं वे उसे गलत रास्ते पर तो नहीं ले जा रहे हैं? अतः अपने बच्चों को भय के फोबिया से बाहर लाये, कहीं उनका पूरा भविष्य, भय के अंधकार में ना चला जाये?

कोरोना ने लाखों घरों को बर्बाद कर दिया, लाखों लोगों की जान ले ली। लोग सालों तक घरों में कैद रहने को मजबूर हो गये, नौकरी करने वाले काफी लोगों ने सालों तक घर से ही आफिस किया था। कोरोना काल के बाद लोगों की हेल्थ, शरीर, इम्यूनिटी को लेकर काफी चर्चे हुये और लोग जागरूक भी हुये, परन्तु इस काल में मिली एक बिमारी की कभी चर्चा नहीं हुई, वो है एक मानसिक समस्या ‘‘होम सिकनेस’’। सालों तक घर में कैद रहने के कारण लोगों में होम सिकनेस की बीमारी घर कर गयी, उन्हें काफी समय तक बाहर जाने से डर लगता रहा, मेरे बाद घर पर पत्नि-बच्चे कैसे रहेंगे, घर में कोई आया तो उसे कैसे बात करेंगे, घर का दरवाजा ठीक से बन्द किया भी होगा या नहीं आदि आदि, ऐसी अनेक बातें जिन्हें वह कोरोना काल में वह खुद ही करते थे? उसे यह चिन्ता रहती थी कि वे सब काम अब मेरी पत्नि-बच्चे कैसे करेंगे?

जब जाॅब पर जाना मजबूरी बन गया तो काफी समय बाद यह डर लोगों के जहन से दूर हुआ, अब भी काफी लोग इस डर के कारण घर से ही आफिस कर रहे हैं? 

प्रिय प्रबुद्ध पाठकों! ऊपर मैंने डर के कई उदाहरण दिये, ये अनेक प्रकार के हो सकते हैं, जैसे पानी से डर, आग से डर, ऊंचाई से डर, जंगली जानवरों से डर आदि आदि। ध्यान से देखा जाये तो अधिकतर के ये डर हमारी मन द्वारा उत्पन्न किये हुए होते हैं, उनका कोई अस्तित्व ही नहीं होता।

एस्ट्रोलाॅजर होने के कारण मैं डर का ज्योतिषीय कारण भी अवश्य दूंगा, साथियों! ज्योतिष में राहु-केतु नाम के दो ग्रह होते हैं, जिन्हें छाया ग्रह कहा जाता है, ये सूर्य और चन्द्रमा की छाया से उत्पन्न होते हैं, कुण्डली में यदि इनकी स्थिति अच्छी नहीं हैं तो ये जातक को उपरोक्त प्रकार के मानसिक रोग, फोबिया देते हैं। ऐसे चीजों का भय दिखाते हैं जिनका अस्तित्व ही नहीं है, और इंसान रस्सी को सांप समझकर डरने लगता है।

इसी प्रकार साइक्लोजिस्ट का भी कहना है कि हमारे मन के 90 प्रतिशत डर छदम या वहम होते हैं वास्तव में उनका कोई अस्तित्व ही नहीं होता। हम अपनी पूरी जिन्दगी एक अनाम-आशंका के खौफ में बिता देते हैं। 

यदि हम इन समस्याओं के बारे में किसी साइकेट्रिस्ट से मिलते हैं तो वह सम्मोहन की अवस्था में गहरी नींद में ले जाकर, केवल मानसिक सजेशन या सुझाव द्वारा ही इनका ट्रिटमेंट करते हैं, ज्यादा गंभीर स्थिति में नींद की गोलियां दी जाती हैं। 

अच्छा तो यह है कि यदि हमें स्कुटी, गाड़ी, पानी, ऊंचाई, भूत-प्रेत आदि से डर लगता है तो इसे हम अपने आप को मानसिक सुझाव देकर भी, इस फोबिया का स्वयं ट्रीटमेंट कर सकते हैं, स्वयं को मानसिक सुझाव या सजेशन देने का सबसे अच्छा समय है, जब आप अपनी पूजा, या मैडिटेशन कर चुके होते हैं, यदि पूजा मैडिटेशन के बाद अपने आप को मानसिक सुझाव दिये जायें तो वो बहुत जल्दी कारगर सिद्ध होते हैं, और वे सम्मोहन वाले सजेशन के समान ही लाभ देते हैं। क्या व किस प्रकार सुझाव दें इस बारे में आप चाहे तो मुझसे व्हाट्सएप पर संपर्क कर सकते हैं या फिर किसी साइकेट्रिस्ट से मिल सकते हैं। 

छोटे बच्चों में यदि इस प्रकार के फोबिया है तो उनको हम समझा-बुझा कर दूर कर सकते हैं, यदि बच्चा पुलिस से डरता है तो बच्चे की पुलिस मैन से मुलाकात करायी जा सकती है। बच्चा रात में घर में भी इधर-उधर जाने से डरता है तो उसका हौंसला बढ़ाकर उसे प्रोत्साहित करें, और उसे अपने साथ दूसरे कमरों में लेकर जायें, इससे उसकी डरने की प्रवृति दूर होगी। यदि नदी आदि में नहाने से डरता है तो उसे अपने साथ सुरक्षित रूप से स्वीमिंग पुल में नहलाने ले जाये, उससे उसका पानी से भय दूर हो जायेगा। साथ ही पैरेन्टस बच्चों को बहुत ज्यादा कड़े अनुशासन में न रखें, उनकी प्रतिभा को भी पनपने व निखरने का अवसर दें।
ताकि हमारे साथ वे भी कह सके कि डर से डर क्या!!!

‘शहरयार’ के एक शेर से अपनी बात समाप्त करता हूं-
बे-नाम  से  इक  खौफ  से  दिल  क्यूं है परेशां
जब तय है, कि कुछ वक्त से पहले नहीं होगा।

आलेख पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतिक्षा में आपका अनुज-
प्रस्तुति: संजय कुमार गर्ग, लेखक, वास्तुविद्, एस्ट्रोलाॅजर 8791820546 Whats-app
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