जब आवत संतोष धन.....! (विचारोत्तेजक लेख)

जब आवत संतोष धन.....! (विचारोत्तेजक लेख)

मेरे साथ एक काॅलेज में शर्मा जी लैब असिटेन्ट थे, काफी बुजुर्ग थे, परन्तु काफी एक्टिव भी थे, काॅलिज के 250 के स्टाॅफ में वे सबसे ज्यादा बुजुर्ग थे, एक बार मैंने उनसे पूछा शर्मा जी आप पहले कहां काम करते थे, किस जाॅब में थे? आपकी एज कितनी हैं? आदि आदि। शर्मा जी ने बताया मैं एयरफोर्स से रिटायर हुआ था, उसके बाद मैंने भेल में जाॅब की, वहां से भी रिटायर होने के बाद मैंने लगभग पांच काॅलिजों में जाॅब की यह मेरी छठी जाॅब है और इस समय मेरी एज 85 वर्ष है। यह सुनकर मैं सन्न रह गया। मैंने उनसे पूछा सर! आपकी दो पेंशन आ रही हैं, अच्छी पेंशन आ रही होगी फिर भी आप जाॅब क्यों कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि मैं जाॅब इसलिए कर रहा हूं ताकि मैं एक्टिव रह सकूं?

साथियों! क्या एक्टिव रहने के लिए जाॅब करना जरूरी है? इस आयु में एक्टिव रहने के लिए सोशल सर्विस, बागवानी, लेखन आदि कुछ भी तो किया जा सकता है? परन्तु उनका नौकरी यानि धन कमाने के लिए एक्टिव होने से, एक युवा बेरोजगार की नौकरी छिन रही है, जिसको शर्मा जी से ज्यादा नौकरी की आवश्यकता है? मेरी राय में यह एक्टिव रहने की ललक नहीं केवल पैसा कमाने की हवस है, क्योंकि एक्टिव रहने के लिए नौकरी ही जरूरी नहीं है?

एक पार्टी में काफी भीड़ थी, खाना खाने के लिए एकदम से अधिक लोग आ गये, जबकि कचौरी बन नहीं पा रही थीं। तभी वेटर ट्रे में 20-25 कचौरी लेकर वहां आया, पहले खड़े व्यक्ति ने रास्ते में ही 4 कचौरी झपट ली, उसे देखकर दूसरे ने भी 4 कचौरी झपटी, इसी प्रकार वे 20-25 कचौरी 5-6 लोगों ने ही झपट ली, जो दूर थे, वे बिना कचौरी के ही मनमसोस कर रह गये और छोले-चावल मिलाकर ही खाने लगे। यदि पहले 5-6 लोगों में संतोष होता और वे 1-2 कचौरी ही लेते, और लोगों की भी बारी आने देते तो क्या समस्या थी? चाहे उनकी ली गयी 4 कचौरियों में से सारी कचैरियां उनसे खायी भी ना जाये? परन्तु हमें संतोष है कहां?

एक और उदाहरण देखिए, अनेक प्रसिद्ध बुजुर्ग अभिनेता करोड़ों रूपये लेकर एक एपीसोड और फिल्में करते हैं, अनेकों एड करते है उनसे भी करोड़ो रूपये कमाते है, क्योंकि प्रसिद्ध और अनुभवी होने के कारण अन्य अभिनेताओं की तुलना में, निर्माता उन्हें प्राथमिकता देते हैं। उनके पास पैसे की कोई कमी नहीं है। इंडस्ट्री में संघर्षरत नये अभिनेताओं को इनके कथित एक्टिव रहने के कारण उन्हें कोई अच्छा काम मिलता ही नहीं हैं? उन्हें लाख रूपये भी एड या सीरियल के कोई देने के लिए तैयार नहीं है? ऐसा नहीं है उनमें प्रतिभा नहीं है? प्रतिभा भी है, परन्तु जब तक बड़े अभिनेता, निर्माताओं के पास सशक्त विकल्प के रूप में उपलब्ध हैं तो इन संघर्षरत अभिनेताओं की कोई पूछ ही नहीं है? डिप्रेशन में आकर इन्हें आत्महत्या जैसे कदम भी उठाने पड़ जाते हैं? स्थापित अभिनेता तब तक रिटायरमैंट लेने के लिए तैयार नहीं होते, जब तक की उसकी पूछ बन्द नहीं होती? क्योंकि पैसे कमाने की हवस है साहब, संतोष तो उनके पास है ही नहीं...?

मुझे मेरठ में काली पलटन के मंदिर के पास स्थित एक स्कूल में जाने का अवसर मिला। वहां उस स्थान पर बहुत सारे भिखारियों की झोपड़ी बनी हुई हैं, जिन्हें लोग रोज आकर पैसे-खाने का सामान देते हैं। उनके आसपास बहुत सारी निराश्रित गायें भी घूमती रहती हैं, यदि वो उनके खाने के पास आ जाती हैं तो वे बड़ी बेदर्दी से मार कर उन्हें भगा देते हैं। एक-एक भिखारी के पास एक दिन में सौ से भी ज्यादा रोटियां, पूरियां इकट्ठी हो जाती हैं, वे उन्हें किसी जरूरतमंद या गाय या कुत्तों को नहीं खिलाते, बल्कि अपनी झोपड़ी में इकट्ठी करते रहते हैं, मैंने स्वयं उनकी झोपड़ी में रोटियों की बोरी भरी देखी हैं। अपना पेट तो वे अच्छी-अच्छी खाने की चीजों से भरे रखते हैं, परन्तु इकट्ठी रोटी वे किसी को नहीं देते, कोरोना त्रासदी के समय भी पुलिस ने इनकी झोपड़ियों से रोटियों की बोरियां बरामद की थी, एक ओर लोग भूख से मर रहे हैं और दूसरे के पास अन्न बर्बाद करने के लिए भी है? ये मांगने की हवस है, इन्हें संतोष है ही नहीं......?

अनेक उदाहरणों से हमने देखा रोटी, धन, पैसा हमारी शारीरिक भूख और भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति तो कर सकते हैं परन्तु हमारी मानसिक भूख, हवस की पूर्ति नहीं कर सकते। मन की भूख संतोष से ही मिटती है जो आज हम में है ही नहीं? 

पैसा, धन, दौलत, शौहरत के पीछे दुनिया पागलों की तरह दौड़ रही है, साथ ही ऐसे लोगों का हक छीन रही है जो प्राकृतिक रूप से उसके सही दावेदार थे, इस अंधी दौड़ में हम बीमार हो रहे है...., मर रहे है....., परन्तु रूक नहीं रहे....? क्योंकि जिस धन की हमें तलाश है वह धन हमें वास्तव में मिला ही नहीं....?? इसलिए गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है-

गोधन, गजधन, बाजिधन और रतनधन खान,
जब  आवत  संतोष  धन, सब धन धूरि समान।
अर्थात तुलसीदास जी कहना है कि मनुष्य के पास चाहे गौ यानि गाय रूपी धन हो, गज धन यानि हाथी रूपी धन हो, वाजि धन यानि घोड़े रूपी धन हो और रत्नों की खान ही क्यों ना हो, वह कभी संतुष्ट नहीं हो सकता, जब उसके पास संतोषरूपी धन आ जाता है, तो बाकि सारे धन उसे धूल के समान दिखायी देने लगते हैं, इसका तात्पर्य है कि संतोष धन हमारी सबसे बड़ी संपत्ति है।

आलेख पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतिक्षा में आपका अनुज-
प्रस्तुति: संजय कुमार गर्ग, लेखक, वास्तुविद्, एस्ट्रोलाॅजर 8791820546 Whats-app
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