घाघ भड्डरी की स्वास्थ्य पर सम्पूर्ण कहावतें

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घाघ व भड्डरी की कहावतें प्रसिद्ध हैं, जहां घाघ ने नीति, खेती व स्वास्थ्य संबंधी कहावतें कहीं है वहीं भड्डरी ने ज्योतिष, वर्षा आदि से संबंधित कहावतें कहीं हैं, यदि हम घाघ का अर्थ खोजते हैं तो घाघ किसी हठी, जिद्दी व्यक्ति को कहा जाता है, वहीं यदि हम भड्डरी के अर्थ को देखते हैं तो इसका शाब्दिक अर्थ भंडार का अध्यक्ष होता है, वैसे ये एक हिन्दू जाति में लगाया जाने वाला ‘‘सरनेम’’ भी है। बताया जाता है कि घाघ कवि का पूरा नाम देवकली दुबे था, ये जाति से ब्राह्मण थे। इनके दो पुत्र थे। ये भी कहा जाता है कि घाघ कवि की कविताएं/कहावतों से अकबर भी अत्यंत प्रभावित था और उसके परिणाम स्वरूप घाघ को ‘‘चौधरी’’ की उपाधि दी तथा बहुत सा धन-जमीन पुरस्कार में दिये थे।
आज के आलेख में हम केवल घाघ भड्डरी की स्वास्थ्य संबंधी कहावतें अर्थ सहित पढ़ेंगे। जो निश्चित ही आपके ज्ञान में वृद्धि के साथ-साथ आपके स्वास्थ्य का भी ध्यान रखेगी।

घाघ भड्डरी की स्वास्थ्य पर सम्पूर्ण कहावतें

खाय कै मूतै सो वै बाॅंऊ, काहे वैद बसावे गाऊॅं।

घाघ कहते हैं कि भोजन करने के बाद पेशाब करके बायी करवट सोने से स्वास्थ्य ठीक रहता है, घाघ की इस कहावत की योग व आयुर्वेद विज्ञान भी समर्थन करता है।

पहिले जागै पहिले सोवै जो वह सोचे वही होवै।

घाघ कहते हैं कि रा़ित्र में जल्दी सोने से व प्रातःकाल में जल्दि उठने से बुद्धि तीव्र होती है, और हमारी विचार शक्ति भी बढ़ जाती है हम जो भी पाने की कल्पना करते हैं वो हमें प्राप्त होने की संभावना रहती है।
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प्रातकाल खटिया से उठि के पिये तुरन्ते पानी।
वाके घर मा वैद ना आवै बात घाघ कै जानी।।

प्रातःकाल उठते ही जल पीकर जो व्यक्ति शौच जाता है वह हमेशा स्वस्थ रहता है, उनके घर में डाक्टर के आने की आवश्यकता नहीं रहती।

गाय दुहे बिन छाने लावै, गरमागरम तुरंत चढ़ावै।
बाढ़ै बल और बुद्धी भाई, घाघ कहे यह सच्ची गाई।।

घाघ कहते हैं कि गाय का धारोष्ण दूध यानि गाय के थनों से सीधा पिया जाने वाला दूध पीने से बल और बुद्धि बढ़ती है यह बात बिल्कुल सच्ची है।

आलस कभौ न करिये यार, चाहे काम परे हों हजार।
मल की शंका तुरत मिटावै, वही सभी सुख पुनि पुनि पावै।।

घाघ कहते हैं कि यदि शौच की इच्छा हो रही है तो सारे जरूरी काम छोड़कर पहले शौच जाना चाहिए, ऐसा करने वाला व्यक्ति सदा सुखी रहता है।

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मेहनत करै जो दंड उठाय, कहै घाघ यह ब्योरा गाय।
कभी बीमार पड़ै नहीं भाय, वहिके बाद जो दूध जमाय।।

घाघ ने बताया कि मुग्दर (एक प्रकार का भारतीय व्यायाम करने का उपकरण) का व्यायाम करने के बाद जो दूध पीता है वह व्यक्ति कभी बीमार नहीं पड़ता।

ज्यादा खाय जल्द मर जाय, सुखी रहे जो थोड़ा खाय।
रहे निरोगी जो कम खाय, बिगरे काम न जो गम खाय।।

घाघ कहते हैं कि जो व्यक्ति अधिक खाता है वो जल्दी ही मर जाता है, थोड़ा खाने वाला सुखी व निरोगी रहता है, जैसे कम खाने से निरोगी रहते हैं वैसे ही संतोष रखने से अपने काम नहीं बिगड़ते।

जाको मारा चाहिए बिन मारे बिन घाव।
वाको यही बताइये घुंइया पूरी खाव।।

घाघ कहते हैं कि यदि किसी से शत्रुता हो तो उसे अरबी की सब्जी और पूड़ी खाने की सलाह देनी चाहिए। इसके सेवन करने से वह जल्दी अस्वस्थ होकर मरने योग्य हो जायेगा, कोई अन्य उपाय नहीं करना होगा। क्यांकि अरबी की सब्जी और पूड़ी कब्ज करते हैं इसलिए यदि वह लगातार उन्हें खायेगा तो उसे कब्ज हो जायेगी।

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क्वार करैला चैत गुड़, भादौं मूली खाय।
पैसा खरचै गांठ का, रोग बिसावन जाय।।

घाघ बताते हैं कि क्वार के महीने में करेला, चैत के महिने में गुड़ और भादौं के महिने में मूली खाना हानिकारक है इन महिनों में इन्हें नहीं खाना चाहिए। इन्हे खाने से शरीर में रोग लग जाते हैं और डाक्टर के पास जाने से पैसा भी खर्च होता है।

चैते गुड़ बैसाखे तेल, जेठ में पंथ अषाढ़ में बेल।
सावन साग न भादों दही, क्वारे दूध न कातिक मही

मगह न जारा पूष घना, माघे मिश्री फागुन चना।
घाघ उपरोक्त बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि चैत (मार्च-अप्रेल) में गुड़, बैसाख (अप्रेल-मई)  में तेल, जेठ (मई-जून) में यात्रा, आषाढ़ (जून-जौलाई) में बेल, सावन (जौलाई -अगस्त)  में हरे साग, भादौं (अगस्त-सितम्बर)  में दही, क्वार (सितम्बर-अक्तूबर)  में दूध, कार्तिक (अक्तूबर-नवम्बर) में छाछ, अगहन (नवम्बर-दिसम्बर) में जीरा, पूस (दिसम्बर-जनवरी) में धनियां, माघ (जनवरी-फरवरी) में मिश्री और फागुन (फरवरी-मार्च)  में चने खाना हानिप्रद होता है।



सावन हरैं भादौं चीता, क्वार मास गुड़ खाहू मीता।
कातिक मूली अगहन तेल, पूस में करे दूध सो मेल।
माघ मास घी खिचरी खाय, फागुन उठि के प्रात नहाय।
चैत मास में नीम सेवती, बैसाखहि में खाय बसमती
जेठ मास जो दिन में सोवे, ताको जुर अषाढ़ में रोवे।
घाघ ने लिखा है कि सावन में हर्रैं, भादों में चीता, क्वार में गुड़, कार्तिक में मूली, अगहन में तेल, पूस में दूध, माघ में खिचड़ी, फाल्गुन में प्रातः स्नान, चैत में नीम की कोपलें, बैशाख में चावल खाने और जेठ के महीने की दोपहर में सोने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है उसे बुखार नहीं आता।
संकलन-संजय कुमार गर्ग 

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चन्द्र ग्रह का वास्तु-ज्योतिषीय-हस्तरेखीय वर्णन

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चंद्रमा पृथ्वी का उपग्रह है, पृथ्वी से चन्द्रमा की दूरी 3,84,000 किमी है। चन्द्रमा का गुरूत्वाकर्षण पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण का 1/6 है। यानि ऐसी वस्तु जिसे पृथ्वी पर उठाना भी कठिन है, वहीं वस्तु चन्द्रमा पर एक गेंद की भांति हवा में उछाली जा सकती है। यह स्वयं प्रकाशित नहीं होते वरन् सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित होते हैं। चन्द्रमा प्रतिदिन पिछले दिन की अपेक्षा 53 मिनट देरी से उदय होते हैं। चन्द्रमा की गुरूत्वाकर्षण शक्ति के कारण ही पृथ्वी पर ज्वार-भाटा आते है। चन्द्रमा के उदय होने में प्रतिदिन 53 मिनट का अंतर होता है अतः ज्वार-भांटा भी एक स्थान पर पिछले दिन की अपेक्षा 53 मिनट देरी से आता है। माना किसी स्थान पर समुद्र में दोपहर 12 बजे ज्वार-भाटा आया है तो कल यानि अगले दिन ज्वार-भाटा 12 बजकर 53 मिनट पर आयेगा। इसी प्रकार आने वाले दिनों में इसका समय बढ़ता चला जायेगा। चन्द्रमा का आकार पृथ्वी के आकार का एक चौथाई है। सूर्य के बाद यह सबसे ज्यादा चमकदार ग्रह हैं। यह पृथ्वी की परिक्रमा 27 दिन 6 घंटे में पूरी करता है। इनकी औसत गति एक मिनट में एक अंश होती है।

चन्द्र का पौराणिक विवरण-

श्रीमद्भागवत के अनुसार चन्द्रदेव महर्षि अत्रि और अनसूया के पुत्र हैं। इनको सर्वमय कहा गया है। ये सोलह कलाओं से युक्त हैं। भगवान कृष्ण ने इन्हीं के वंश में अवतार लिया था। इसलिए भगवान श्री कृष्ण चन्द्र की सोलह कलाओं से युक्त थे। चन्द्रदेव का रंग गौर है। इनके वस्त्र, अश्व और रथ तीनों श्वेत रंग के हैं, ये सुन्दर रथ पर एक कमल के आसन पर बैठे हैं। इन्होंने सुन्दर सोने का मुकुट धारण किया हुआ है व गले में सोने की माला है। इनके हाथ में गदा तथा दूसरे हाथ से प्राणिमात्र को आशिर्वाद दे रहे हैं।

पौराणिक कथा-

हरिवंश पुराण के अनुसार ब्रह्मा जी ने चन्द्र देव को बीज, औषधि, जल और ब्राह्मणों का राजा बनाया। इनका विवाह महाराज दक्ष की 27 पुत्रियों से हुआ था। ये 27 नक्षत्रों अश्विनी, भरणी, कृतिका आदि के रूप में जानी जाती हैं। इनके पुत्र का नाम बुध है जो तारा से उत्पन्न हुए हैं। ये 27 दिन में 27 नक्षत्रों पर भ्रमण करते हैं। पुराणों के अनुसार चन्द्रदेव का रथ वाहन है इस रथ में तीन चक्र हैं। इस रथ में दस घोड़े जुते रहते हैं, इन घोड़ों के नेत्र, कान श्वेत होने के साथ-साथ, इन घोड़ों का वर्ण भी श्वेत है।

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चन्द्र का वास्तु के अनुसार विवरण-

चन्द्र देव वास्तु में वायव्य दिशा का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह दिशा कालपुरूष के घुटने एवं हाथों की कोहिनी का प्रतिनिधित्व करती है। यदि जन्मकुण्डली के हिसाब से देखें तो पांचवा व छठा भाव वायव्य कोण का प्रतीक माना जाता है। पश्चिम-उत्तर दिशा के मध्य स्थापित यह दिशा वायव्य व्यवहारों के परिवर्तन में मित्र व शत्रुओं का कारण बन जाती है। अर्थात यह दिशा हमारे जीवन में शत्रुओं व मित्रों का प्रतिनिधित्व करती है। इस दिशा का प्रभाव घर की महिला सदस्यों के साथ-साथ तीसरी संतान पर भी पड़ता है। मुकदमें में हार-जीत पर भी यह दिशा प्रभाव डालती है। यह दिशा जहां अतुलित धन-सम्पत्ति का स्वामी बना सकती हैं वहीं दिवाला भी निकाल सकती है। वायव्य दिशा निवासी को साधु-सन्यासी, दार्शनिक तक बना सकती है।


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चन्द्रमा का ज्योतिषीय विवरण-

नवग्रहों में चन्द्र को रानी की उपाधि दी गयी है। चन्द्रमा को फारसी में महताब और अंगेजी में मून और हिन्दी में शशि, राकेश, हिमांशु, सारंग आदि नामों से भी जाना जाता है। यह वायव्य दिशा के स्वामी हैं, स्त्री रूप हैं और सौम्य ग्रह माने जाते हैं। ये जन्मकुण्डली में जिस भाव पर बैठते हैं वहां से सातवें भाव पर पूर्ण दृष्टि रखते हैं। ये सूर्य, बुध को अपना मित्र तथा राहु को अपना शत्रु मानते हैं। मंगल, गुरू, शुक्र व शनि से समभाव रखते हैं। कर्क इनकी स्वराशि है। ये वृष राशि में उच्च के तथा वृश्चिक राशि में नीच के होते हैं। चन्द्र द्विस्वभाव के ग्रह हैं यानि अकेले ही पाप और शुभ दोनों फलदायी बन जाते हैं। ये वैश्य जाति के माने जाते हैं और अपरान्ह में बलि होते हैं। रिश्तों में ये माता का प्रतिनिधित्व करते हैं। राजपाठ में ये रानी के पद को सुशोभित करते हैं। चन्द्रमा जल तत्व के ग्रह हैं। कुण्डली में इनसे जल, कफ, पाण्डुता आदि बीमारियों के साथ-साथ मानसिक बीमारियों का भी अध्ययन किया जाता है। छोटी यात्रा व विदेश यात्रायों आदि का कारण भी चन्द्रमा ही होते हैं। शीघ्रगामी व पृथ्वी के सबसे निकट ग्रह होने के कारण गोचर में मानव शरीर पर इनका सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है। ये ‘‘चन्द्रमा मनसो जातः’’ मन के कारक ग्रह हैं यानि जातक के मन पर सबसे ज्यादा प्रभाव डालते हैं तथा शरीर में मानव-रक्त-परिभ्रमण का इनसे विशेष संबंध है। चांदी इनकी प्रिय धातु है और ये मोती में निवास करते हैं। इसलिए मोती के लिए अंगूठी चांदी की ही बनायी जाती है। इनकी महादशा 10 वर्ष की होती है।

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हस्तरेखा में चन्द्र का स्थान-

हथेली में कन की उंगली यानि लिटिल फिंगर के सबसे नीचे, भाग्य रेखा के बायीं ओर तथा मणिबंध के ऊपर का क्षेत्र चन्द्र क्षेत्र या चन्द्र पर्वत कहलाता है। जिनके हाथ में चन्द्र पर्वत पूरी तरह उभरा हुआ होता है वे प्रकृति प्रेमी तथा सौन्दर्य प्रेमी होते हैं। ऐसे जातक वास्तविक जीवन से हटकर स्वप्नलोक में ही विचरण करते हैं। जिनके हाथों में इसका अभाव होता है वे व्यक्ति कठोर ह्दय तथा पूर्णतः भौतिकवादी होते हैं। चन्द्र रेखा धनुष के आकार की होती है, यह चन्द्र क्षेत्र से प्रारम्भ होकर बुध पर्वत (लिटिल फिंगर के नीचे का क्षेत्र) तक जाती है। यह रेखा कम लोगों के हाथों में देखने को मिलती है। चन्द्र पर्वत से ही हम जीवन में यात्राओं तथा शारीरिक बीमारियों के बारे में अध्ययन करते हैं।

चन्द्र ग्रह के जपनीय मंत्र-


वैदिक मंत्र-

 इमं देवा असपन्तंसुवध्वं महते क्षत्राय महते ज्यैष्ठयाय महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय।
इमममुष्य पुत्रममुष्यै पुत्रमस्यै विश एष वोऽमी राजा सोमोऽस्माकं ब्राह्मणानाॅंराजा।।

पौराणिक मंत्र-

दधिशड्तुषाराभं    क्षीरोदार्णवसम्भवम्।
नमामि शशिनं सोमं शम्भोर्मुकुटभूषणम्।।

बीज मंत्र-

ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्राय नमः

सामान्य मंत्र-

ॐ सों सोमाय नमः

इनमें से किसी एक मंत्र का श्रद्धापूर्वक एक निश्चित संख्या में नित्य जाप करना  चाहिए। जप की कुल संख्या 11000 तथा समय संध्याकाल है।


प्रिय पाठकों आपको ये आलेख कैसा लगा कमैंटस करके बताना ना भूलें, कोई त्रुटि, कमी या रह गयी हो तो अवश्य बतायें ताकि इस श्रृंखला के नये आलेख में मैं वह कमी दूर कर सकूं।  

प्रस्तुति: संजय कुमार गर्ग, वास्तुविद्, एस्ट्रोलाॅजर 8791820546 Whats-app

कैसे आसमान में सुराख़ हो नहीं सकता....हिन्दी ग़ज़लें

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(1)

ये जो शहतीर है पलकों पे उठा लो यारो,
अब कोई ऐसा तरीका भी निकालो यारो।
दर्द-दिल वक्त पे पैगाम भी पहुंचायेगा,
इस कबूतर को जरा प्यार से पालो यारो।
लोग हाथों में लिये बैठे हैं अपने पिंजरे,
आज सैय्याद को महफिल में बुला लो यारो।
आज सींवन को उधेड़ों तो जरा देखेंगे,
आज संदूक से वो खत तो निकालो यारो।
रहनुमाओं की अदाओं पर फिदा है दुनिया,
इस बहकती हुई दुनिया को संभालों यारो।
कैसे आकाश में सूराख हो नहीं सकता,
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो।
लोग कहते थे कि ये बात नहीं कहने की,
तुमने कह दी है तो कहने की सजा लो यारो।
-दुष्यंत कुमार

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(2)

कब तक यूं बहारों में पतझड़ का चलन होगा
कलियों की चिता होगी, फूलों का हवन होगा
हर धर्म की रामायण युग-युग से यह कहती
सोने  का  हरिण  होगें, सीता का हरण होगा।
जब प्यार किसी दिल का पूजा में बदल जाये
हर  सांस  दुआ  होगी  हर शब्द भजन होगा।
इस  रूप  की  बस्ती  में क्या माल खरीदोगे?
पत्थर  के ह्दय होंगे, शीशे  का  बदन होगा।
विज्ञान के भक्तों को अब कौन  यह समझाये
वरदानों से अपने ही दशरथ का मरण होगा।
इन्सान  की  सूरत में  जब भेड़िये फिरते हों
तब ‘हंस’ कहो कैसे दुनिया में अमन होगा।
-उदय भानु ‘हंस’

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 (3)

खेतों का हरापन मैं कहां देख रहा हूं
मैं रेल के इंजन का धुआं देख रहा हूं।
खंजर जो गवाही है मेरे कत्ल की उस पर
 अपनी ही उंगलियों के निशां देख रहा हूं।
जो मैंने खरीदा था कभी बेच के खुद को
नीलाम में बिकता वो मकां देख रहा हूं।
बूढ़ी हुई उम्मीद तो क्या, फिर भी लडूंगा
मैं अपने इरादे का जवां देख रहा हूं।
जिस राह से जाना है नयी पीढ़ी को ‘राही’
उस राह में इक, अंधा कुंआ देख रहा हूं।
-बालस्वरूप राही

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(4)

तन बचाने चले थे कि मन खो गया
एक मिट्टी के पीछे रतन खो गया।
घर वही, तुम वही, मैं वही, सब वही
और सब कुछ है वातावरण खो गया।
यह शहर पा लिया, वह शहर पा लिया
गाँव का जो दिया था वचन खो गया।
जो हजारों चमन से महकदार था
क्या किसी से कहें वह सुमन खो गया।
दोस्ती का सभी ब्याज जब खा चुके
तब पता यह चला, मूलधन ही खो गया।
यह जमीं तो कभी भी हमारी न थी
यह हमारा तुम्हारा गगन भी अब खो गया।
हमने पढ़कर जिसे प्यार सीखा था कभी
एक गलती से वह व्याकरण भी खो गया।
-रामावतार त्यागी

संकलन-संजय कुमार गर्ग sanjay.garg2008@gmail.com

मुक्तक/शेरों-शायरी के और संग्रह 

चाणक्य ने बताया, कौन सी स्त्री चतुर होती है !

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नीतियों पर अनेक ग्रंथ भारतीय साहित्य परंपरा में प्राप्त होते हैं, जैसे चाणक्य नीति, विदुर नीति, भृतहरि नीति, घाघ व भण्डरी की नीति व सुभाषितानी के नीति श्लोक आदि। इन सभी नीतियों पर मैंने आलेख लिखें हैं जिनके लिंक आपको यही पर मिल जायेंगे। चाणक्य नीति पर मेरा ये नया आलेख "कौन सी स्त्री चतुर होती है" आपके सम्मुख प्रस्तुत है-

चाणक्य बताते हैं कि ‘‘यह निश्चय है कि आयु, कर्म, धन, विद्या, मृत्यु-ये पाचों बातें जब जीव (मनुष्य) मां के गर्भ में होता है, तभी लिख दी जाती हैं।’’ (4,1)

चाणक्य बताया कि ‘‘तप अकेले में, गाना तीन से, पढ़ना दो से, चार से रास्ता चलना, पांच से खेती करना और बहुतों से युद्ध भली-भांति होता है।’’ (4,12)

महात्मा चाणक्य कहते हैं कि निम्न को त्याग देना चाहिए ‘‘प्रीतिहीन समाज, दयारहित धर्म, विद्या रहित गुरू का त्याग उचित है। जो स्त्री क्रोध प्रगट करती हो उसको भी त्याग देना उचित है।’’ (4,16)

चाणक्य बताते हैं कि निम्न का शत्रु कौन है ‘‘पण्डितों के लिए मूर्ख, दरिद्री मनुष्यों के लिए धनी, विधवा स्त्रियों के लिए सुहागन और कुल वधुओं के लिए कुलटा शत्रु होती है।’’ (5,6)

कोटिल्य बताते हैं कि कौन सी वस्तु कब नष्ट हो जाती है ‘‘दूसरों के हाथों में पड़कर लक्ष्मी नष्ट हो जाती है, उसी प्रकार आलस्य आने से विद्या नष्ट हो जाती है, कम बीज से खेत नष्ट सा रहता है और बिना सेनापति के सेना नष्ट हो जाती है।’’ (5,7) प्रिय पाठकों इससे मिलता जुलता श्लोक सुभाषितानि में भी आया है-‘‘अपनी पैन, पुस्तक और पत्नि किसी अन्य को दी जाये तो वह वापस नहीं आती अर्थात उसे गया हुआ ही समझना चाहिए और यदि दैवयोग से वापस आ भी जाती है तो कलम टूटी हुई, पुस्तक फटी हुई व पत्नि मर्दन की हुई होती है।’’

महात्मा कोटिल्य बताते हैं कि दान दरिद्रता का, शील दुर्गति का, बुद्धि अज्ञान का तथा सद्भावना भय का नाश करती है।’’ (5,11)

चाणक्य बताते हैं कि ‘‘काम (विषय भोग) से बढ़कर कोई व्याधि नहीं, मोह से बढ़कर कोई शत्रु नहीं, क्रोध से बढ़कर कोई अग्नि नहीं और ज्ञान से बढ़कर कोई सुख नहीं होता।’’ (5,12)

चाणक्य समझाते हैं कि-‘‘यह यथार्थ है कि मनुष्य अकेला ही मोक्ष पाता है, वह अकेला ही जन्म लेता है, सुख-दुख भोगकर अकेला ही मर जाता है और अधिक पाप करने पर वह नरक को भी अकेला ही भोगता है।’’ (5,13)

चाणक्य बताते हैं कि कौन चालाक होता है और कौन सी स्त्री चतुर होती है! ‘‘स्त्रियों में मालिन (माली की पत्नि)  चतुर होती है, मनुष्यों में नाई चालाक होता है, पक्षियों में कव्वा धूर्त होता है, और पशुओं में गीदड़ धूर्त होता है।’’ (5,21)

चाणक्य बताते हैं पांच कौन हैं जो पिता के समान होते हैं ‘‘अन्न देने वाला, विद्या पढ़ाने वाला, जन्म देने वाला, भय से रक्षा करने वाला और यज्ञोपवीत देने वाला गुरू ये पांच पिता ही कहे जाते हैं।’’ (5,22)

चाणक्य आगे बताते हैं कि इन स्त्रियों को माता ही समझना चाहिए ‘‘राजा की स्त्री, मित्र की स्त्री, गुरू की स्त्री और माता व सास, इन पांचों को माता ही मानना चाहिए।’’ (5,23)

नीतिज्ञ कौटिल्य बताते हैं किसके पाप को कौन भोगता है ‘‘अपने राष्ट्र द्वारा किये हुए पाप का राजा, राजा से हुए पाप को राजपुरोहित, शिष्य से हुए पाप को गुरू और स्त्री द्वारा किये गये पाप को पति भोगता है।’’ (6,10)

महान नीतिज्ञ चाणक्य कहते हैं कि इनके बीच होकर कभी नहीं चलना चाहिए अर्थात इनके झगड़े के बीच में कभी नहीं आना चाहिए ‘‘पति और पत्नि, ब्राह्मण और अग्नि, नौकर और स्वामी, हल और बैल, व दो ब्राह्मण, इनके बीच होकर कभी नहीं चलना चाहिए।’’ (7,4)

चाणक्य समझाते हैं कि इन सब को कभी पैरों से स्पर्श नहीं करना चाहिए ‘‘अग्नि, गुरू, ब्राह्मण, गौ, कुमारी (कन्या), वृद्ध और बालक इनको पैर से नहीं छूना चाहिए।’’ (7,5)

चाणक्य बताते हैं कि जो जितना साहस दिखाता है उतना ही फल उसे प्राप्त होता है ‘‘यदि सिंह की मांद के पास कोई मनुष्य जाता है तो हाथी के गाल की हड्डी का मोती पाता है, और यदि कोई गीदड़ की मांद के पास जाता है तो बछड़े की पूंछ और गधे के चमड़े का टुकड़ा पाता है।’’ (7,17)

चाणक्य बताते हैं कि आत्मा कहां निवास करती है ‘‘जैसे फूल में गन्ध, तिल में तेल, काठ में आग, दूध में घी, ईख में गुड़ रहता है वैसे ही देह में आत्मा रहती है।’’ (7,20)

किन व्यक्तियों को विदुर के अनुसार गवाह न बनायें...
विदुर के अनुसार आठ गुण पुरूषों की ख्याति बढ़ा देते हैं !
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आपको नींद नहीं आती? वास्तु भी कारण हो सकता है!

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इंसान पूरे दिन भाग-दौड़ में लगा रहता है, फिर रात को अपने घर पहुंचता है इस आशा के साथ कि मैं खा पीकर अब आराम करूंगा, परन्तु जब बिना किसी कारण के वह रात का करवट बदलता रहता है और ठीक से सो नहीं पाता। जबकि उसमें दिमाग में कोई ऐसी चिन्ता भी नहीं होती। वैसे ये कारण मानसिक या शारीरिक भी हो सकते हैं परन्तु यदि आप समझते हैं कि मेरी पर्याप्त नींद न आने का कोई मानसिक या शारीरिक कारण नहीं है तो फिर आपको अपने सोने के वास्तु पर विचार करना चाहिए। आज मैं आपको कुछ ऐसे वास्तु के कारण बता रहा हूं जिनके फाॅलो न करने के कारण आपको नींद न आने की समस्या का सामना करना पड़ सकता है आइये देखते हैं

नींद ना आने के वास्तु के अनुसार कारण-


1. बीम ने नीचे बिस्तर-

यदि आपके बैडरूम में बीम है और आप बीम के नीचे सोते हैं तो यह आपकी नींद में अवश्य खलल डलेगा, यह आपको बिना वजह की मानसिक परेशानियां भी दे सकता है। यदि आपकी नींद ड्रीमी है यानि आप सपने ज्यादा देखते हैं तो यह भी नींद की एक अच्छी अवस्था नहीं कहीं जाती। गहरी नींद वह है जिसमें सोने के बाद सुबह ही आंखे खुले। कोई सपना ना दिखाई दे। अतः यदि आप बीम के नीचे सो रहे हैं तो आप वहां से अपना बिस्तर बदल लें।


2. दक्षिण दिशा की ओर पैर रहना-

यदि सोते समय आपके पैर दक्षिण दिशा की ओर होते हैं तो भी आपको ठीक प्रकार से नींद नहीं आयेगी, आपको डरावने सपने भी दिखाई दे सकते हैं। ध्यान रखे कि दक्षिण दिशा भूत-प्रेतों व पितरों की दिशा हैं, इस दिशा में केवल मृत व्यक्ति को ही लिटाया जाता है। अतः भूलकर भी दक्षिण दिशा में पैर करके न सोयें।

3. दरवाजे के सामने पैर करके सोना-

यदि आप कमरे या बैडरूम के दरवाजे के सामने पैर करके सोते हैं तो भी आपको ठीक प्रकार से नींद नहीं आयेगी। सोने की यह स्थिति तनाव की स्थिति तो उत्पन्न करती ही है, साथ ही आपकी नींद को भी प्रभावित करती है। यह स्थिति घर से किसी व्यक्ति को निकालने जैसी है।

4. ड्रेसिंग टेबिल के सामने लेटना-

यदि आप ड्रेसिंग टेबिल के ठीक सामने लेटते हैं और उसमें आप को अपना चेहरा या शरीर का कोई अंग दिखाई देता रहता है, यह स्थिति आपकी शक्ति का क्षय करती है और आपको मानसिक क्षति पहुंचा सकती है। इस प्रकार लेटने से भी आपको ठीक से नींद नहीं आ पायेगी। ड्रेसिंग टेबल पर रात को सोते समय कपड़ा ढक दें इससे आपकी यह समस्या दूर हो जायेगी और आप ठीक से सो पायेंगे।

5. बैड या पलंग के नीचे जूत-चप्पल रखे हों-

यदि आपको बैड के नीचे जूते-चप्पल रखने की आदत है तो यह भी आपकी नींद को प्रभावित कर सकती है, साथ ही घर में नेगेटिव एनर्जी को बढ़ाती है, यदि आपकी ये चप्पलें केवल घर में ही उपयोग होती हैं तो कोई समस्या नहीं होगी यदि आप इन्हें पलंग के पैरों वाली साइड में निकाल कर रखें। बाहर जाने के लिए प्रयोग होने वाले जूत-चप्पल घर के बाहर ही रखने चाहिए। ध्यान रहे कि घर में उपयोग होने वाली चप्पलें आदि भी बैड के नीचे नहीं होनी चाहिए।

6. बैड के सिरहाने पानी रखना-

बहुत से व्यक्तियों की आदत होती है वे अपने बैड के सिरहाने टेबिल आदि पर पानी रखकर सोते हैं यह भी उचित नहीं है, ऐसा करने से भी आपकी नींद बाधित हो सकती है और आपको बुरे सपने आ सकते हैं। वास्तु में तो ऐसा करने से व्यक्ति के मनोरोगी होने का खतरा बताया गया है। क्योंकि हमारे शरीर में काफी अधिक पानी होता है, और पानी चन्द्रमा का प्रतिनिधित्व करता है, चन्द्रमा हमारे मन का प्रतिनिधित्व करते हैं, इससे हमारे शरीर में चन्द्रमा यानि मन प्रभावित होता है जो हमारी मानसिक स्थिति पर बुरा प्रभाव डालता है। यदि बैडरूम में पानी रखना आवश्यक है तो उसे उत्तर-पूर्व दिशा में शीशे के स्टूल पर रखें।


ये भी ध्यान रखें कि बैड के नीचे पानी रखने से कोई नुकसान नहीं बल्कि लाभ ही प्राप्त होता है। आप अपने बैड के नीचे तांबे के बर्तन में पानी रखकर सोये इससे आपकी नेगेटिव एनर्जी अवशोषित होती है और आपको गहरी नींद भी आती है। परन्तु यह पानी पीने के लिए उपयोग में नहीं लाया जाना चाहिए बल्कि इसे प्रातः किसी गमले आदि में डाल देना चाहिए। 

7. सोते समय किसी के पैर आपके सिर की तरफ होना-

जिन घरों में एक ही कमरे में सब के सोने की व्यवस्था रहती है वहां पर कभी-कभी सोने की व्यवस्था इस प्रकार बनती है कि किसी के पैर आपकी ओर सोते समय हो जाते हैं। ऐसा होना दुर्भाग्य, भाग्यहीनता को निमंत्रण देने के समान तो है ही, साथ ही आपकी नींद को भी प्रभावित करती है। अतः सोने की ऐसी स्थिति से बचें, वास्तु में इस प्रकार सोना वर्जित बताया गया है।

8. दरवाजे के ठीक सामने सोना-

यदि आप अपने बैडरूम में दरवाजे के ठीक सामने सोते हैं तो ये भी एक अच्छी स्थिति वास्तु के अनुसार नहीं कहीं जाती है। इस तरह सोने से शरीर की जीवन शक्ति का क्षय होता है और आपको गहरी नींद आने में भी बाधा उत्पन्न करता है।

9. शौचालय के गेट के समाने सोना-

बहुत से कमरों में शौचालयों की भी व्यवस्था होती है, ऐसी स्थिति में कभी भी शौचालय के गेट के सामने नहीं सोना चाहिए। क्योंकि ये आपकी नींद में तो खलल डालता ही है साथ ही दुर्भाग्य को भी लाता है। रात्रि में बाथरूम यूज करने वाले भी आपकी नींद में खलल डालते हैं।

10. लोहे का पलंग पर सोना-

बहुत से व्यक्ति आजकल घरों में लोहे का पलंग बनवाने लगे हैं, जैसे कि अस्पतालों में होते हैं, जो सोने की दृष्टि से उचित नहीं होते। लोहे के पलंगों से नकारात्मक ऊर्जा पैदा होती है जो हमारे मन-मस्तिष्क को प्रभावित करती है। जिससे हमारे स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है और हमारी नींद को भी प्रभावित करता है।
पाठकों को इस संबंध में कोई और जिज्ञासा हो तो वास्तु के मेरे और आलेख पढ़े, मुझे कमैंटस करें या फिर मुझे मेल कर सकते हैं।
प्रस्तुति: संजय कुमार गर्ग, वास्तुविद्, एस्ट्रोलाॅजर 8791820546 Whats-app
sanjay.garg2008@gmail.com

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