घाघ व भड्डरी की कहावतें प्रसिद्ध हैं, जहां घाघ ने नीति, खेती व स्वास्थ्य संबंधी कहावतें कहीं है वहीं भड्डरी ने ज्योतिष, वर्षा आदि से संबंधित कहावतें कहीं हैं, यदि हम घाघ का अर्थ खोजते हैं तो घाघ किसी हठी, जिद्दी व्यक्ति को कहा जाता है, वहीं यदि हम भड्डरी के अर्थ को देखते हैं तो इसका शाब्दिक अर्थ भंडार का अध्यक्ष होता है, वैसे ये एक हिन्दू जाति में लगाया जाने वाला ‘‘सरनेम’’ भी है। बताया जाता है कि घाघ कवि का पूरा नाम देवकली दुबे था, ये जाति से ब्राह्मण थे। इनके दो पुत्र थे। ये भी कहा जाता है कि घाघ कवि की कविताएं/कहावतों से अकबर भी अत्यंत प्रभावित था और उसके परिणाम स्वरूप घाघ को ‘‘चौधरी’’ की उपाधि दी तथा बहुत सा धन-जमीन पुरस्कार में दिये थे।
आज के आलेख में हम केवल घाघ भड्डरी की स्वास्थ्य संबंधी कहावतें अर्थ सहित पढ़ेंगे। जो निश्चित ही आपके ज्ञान में वृद्धि के साथ-साथ आपके स्वास्थ्य का भी ध्यान रखेगी।
घाघ भड्डरी की स्वास्थ्य पर सम्पूर्ण कहावतें
खाय कै मूतै सो वै बाॅंऊ, काहे वैद बसावे गाऊॅं।
घाघ कहते हैं कि भोजन करने के बाद पेशाब करके बायी करवट सोने से स्वास्थ्य ठीक रहता है, घाघ की इस कहावत की योग व आयुर्वेद विज्ञान भी समर्थन करता है।
पहिले जागै पहिले सोवै जो वह सोचे वही होवै।
घाघ कहते हैं कि रा़ित्र में जल्दी सोने से व प्रातःकाल में जल्दि उठने से बुद्धि तीव्र होती है, और हमारी विचार शक्ति भी बढ़ जाती है हम जो भी पाने की कल्पना करते हैं वो हमें प्राप्त होने की संभावना रहती है।
प्रातःकाल उठते ही जल पीकर जो व्यक्ति शौच जाता है वह हमेशा स्वस्थ रहता है, उनके घर में डाक्टर के आने की आवश्यकता नहीं रहती।
गाय दुहे बिन छाने लावै, गरमागरम तुरंत चढ़ावै।
बाढ़ै बल और बुद्धी भाई, घाघ कहे यह सच्ची गाई।।
घाघ कहते हैं कि गाय का धारोष्ण दूध यानि गाय के थनों से सीधा पिया जाने वाला दूध पीने से बल और बुद्धि बढ़ती है यह बात बिल्कुल सच्ची है।
आलस कभौ न करिये यार, चाहे काम परे हों हजार।
मल की शंका तुरत मिटावै, वही सभी सुख पुनि पुनि पावै।।
घाघ कहते हैं कि यदि शौच की इच्छा हो रही है तो सारे जरूरी काम छोड़कर पहले शौच जाना चाहिए, ऐसा करने वाला व्यक्ति सदा सुखी रहता है।
घाघ ने बताया कि मुग्दर (एक प्रकार का भारतीय व्यायाम करने का उपकरण) का व्यायाम करने के बाद जो दूध पीता है वह व्यक्ति कभी बीमार नहीं पड़ता।
ज्यादा खाय जल्द मर जाय, सुखी रहे जो थोड़ा खाय।
रहे निरोगी जो कम खाय, बिगरे काम न जो गम खाय।।
घाघ कहते हैं कि जो व्यक्ति अधिक खाता है वो जल्दी ही मर जाता है, थोड़ा खाने वाला सुखी व निरोगी रहता है, जैसे कम खाने से निरोगी रहते हैं वैसे ही संतोष रखने से अपने काम नहीं बिगड़ते।
जाको मारा चाहिए बिन मारे बिन घाव।
वाको यही बताइये घुंइया पूरी खाव।।
घाघ कहते हैं कि यदि किसी से शत्रुता हो तो उसे अरबी की सब्जी और पूड़ी खाने की सलाह देनी चाहिए। इसके सेवन करने से वह जल्दी अस्वस्थ होकर मरने योग्य हो जायेगा, कोई अन्य उपाय नहीं करना होगा। क्यांकि अरबी की सब्जी और पूड़ी कब्ज करते हैं इसलिए यदि वह लगातार उन्हें खायेगा तो उसे कब्ज हो जायेगी।
घाघ बताते हैं कि क्वार के महीने में करेला, चैत के महिने में गुड़ और भादौं के महिने में मूली खाना हानिकारक है इन महिनों में इन्हें नहीं खाना चाहिए। इन्हे खाने से शरीर में रोग लग जाते हैं और डाक्टर के पास जाने से पैसा भी खर्च होता है।
चैते गुड़ बैसाखे तेल, जेठ में पंथ अषाढ़ में बेल।
सावन साग न भादों दही, क्वारे दूध न कातिक मही
मगह न जारा पूष घना, माघे मिश्री फागुन चना।
घाघ उपरोक्त बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि चैत (मार्च-अप्रेल) में गुड़, बैसाख (अप्रेल-मई) में तेल, जेठ (मई-जून) में यात्रा, आषाढ़ (जून-जौलाई) में बेल, सावन (जौलाई -अगस्त) में हरे साग, भादौं (अगस्त-सितम्बर) में दही, क्वार (सितम्बर-अक्तूबर) में दूध, कार्तिक (अक्तूबर-नवम्बर) में छाछ, अगहन (नवम्बर-दिसम्बर) में जीरा, पूस (दिसम्बर-जनवरी) में धनियां, माघ (जनवरी-फरवरी) में मिश्री और फागुन (फरवरी-मार्च) में चने खाना हानिप्रद होता है।
सावन हरैं भादौं चीता, क्वार मास गुड़ खाहू मीता।
कातिक मूली अगहन तेल, पूस में करे दूध सो मेल।
माघ मास घी खिचरी खाय, फागुन उठि के प्रात नहाय।
चैत मास में नीम सेवती, बैसाखहि में खाय बसमती
जेठ मास जो दिन में सोवे, ताको जुर अषाढ़ में रोवे।
घाघ ने लिखा है कि सावन में हर्रैं, भादों में चीता, क्वार में गुड़, कार्तिक में मूली, अगहन में तेल, पूस में दूध, माघ में खिचड़ी, फाल्गुन में प्रातः स्नान, चैत में नीम की कोपलें, बैशाख में चावल खाने और जेठ के महीने की दोपहर में सोने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है उसे बुखार नहीं आता।
संकलन-संजय कुमार गर्ग
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